न चाहते हुए भी इतना काम होना था.
हवा में एक बुलबुला तमाम होना था.
जो बन गया है खुद को भूल के फ़क़त राधे,
उसे तो यूँ भी एक रोज़ श्याम होना था.
वो खुद को आब ही समझ रहा था पर उसको,
किसी हसीन की नज़र का जाम होना था.
पता नहीं था आदमी को ज़िन्दगी में कभी,
उसे मशीनों का फिर से ग़ुलाम होना था.
नसीब खुल के अपना खेल खेलता हो जब,
रुकावटों के साथ इंतज़ाम होना था.
ये फ़लसफ़ा है न्याय-तंत्र का समझ लोगे,
जहाँ पे बात ज़ुल्म की हो राम होना था.
ये दिन ये रात वक़्त के अधीन होते हैं,
सहर को दो-पहर तो फिर से शाम होना था.
मिटा सको तो कर के देख लो हर इक कोशिश,
रहेगा हो के जो किसी का नाम होना था.