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पर ये सिगरेट तेरे लब कैसे लगी ...

लत बता तुमको ये कब कैसे लगी.
चाय पीने की तलब कैसे लगी.

फ़ुरसतों का दिन बता कैसा लगा,
और तन्हाई की शब कैसे लगी.

चूस लेंगी तितलियाँ गुल का शहद,
सूचना तुमको ये सब कैसे लगी.

रोज़ बनता है सबब उम्मीद का,
ज़िन्दगी फिर बे-सबब कैसे लगी.

दिल तो पहले दिन से था टूटा हुआ,
ये बताओ चोट अब कैसे लगी.

सादगी से ही ग़ज़ल कहते रहे,
तुम को ये लेकिन ग़ज़ब कैसे लगी.


ग़म के कश भरने तलक सब ठीक है,
पर ये सिगरेट तेरे लब कैसे लगी.



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