काँटों की चुभन है नाक़ाम इश्क़
रहने नहीं देती जो चैन से
महसूस होता है रिस्ता दर्द, रह-रह के चुभती कील सरीखे
एक अन्तहीन दौड़ की दौड़
क्या प्रेम की प्राप्ति के लिए ?
या भटकता है खुद की तलाश में इन्सान ?
नाक़ाम इश्क़ के रिश्ते सँजोना
दीमक लगे पेड़ को जीवित रखने का प्रयास है
जो पनपने नहीं देता नए रिश्तों की नाज़ुक कोंपलें
काटना होता है ऐसे तमाम पेड़ों को दिल की बंज़र ज़मीन से
खिले होते हैं बहुत से जंगली गुलाब
नज़र भर देखना होता है आस-पास का मंज़र
ज़िन्दगी की दौड़ में
समय बदलते ... समय नहीं लगता ...
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