खिड़की की चौखट पे बैठे
उदास परिंदों के प्रश्नों का जवाब किसी के पास नहीं होता
सायं-सायं करती आवारा हवाओं के पास तो बिलकुल नहीं
कहाँ होती है ठीक उसके जैसी वो दूसरी चिड़िया
घर बनाया था तिनका-तिनका जिसके साथ लचकती डाल पर
के मिल के देख लिए थे कुछ सपने सावन के मौसम में
आसान तो नहीं होता लम्हा-लम्हा तिनके कतरा-कतरा उम्र में उलझाना
हालाँकि सपनों की ताबीर उम्र में न हो तो नहीं होती मुकम्मल ज़िन्दगी
पर आसान भी नहीं होता रहना फिर उसी घोंसले में
जहाँ बेहिसाब यादों के तिनके वक़्त के साथ शरीर को लहुलुहान करने लगें
कितनी अजीब होती हैं यादें किसी भी बात से ट्रिगर हो जाती हैं
मेरे प्रश्नों का भी जवाब भी किसी के पास कहाँ होता है
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