खुल कर तो आस्तीन में पाए न जाएँगे.
इलज़ाम दोस्तों पे लगाए न जाएँगे.
सदियों से पीढ़ियों ने जो बाँधी हैं बेड़ियाँ,
इस दिल पे उनके बोझ उठाए न जाएँगे.
अब मौत ही करे तो करे फैंसला कोई,
खुद चल के इस जहान से जाए न जाएँगे.
अच्छा है डायरी में सफों की कमी नहीं,
वरना तो इतने राज़ छुपाए न जाएँगे.
सुलगे हैं वक़्त की जो रगड़ खा के मुद्दतों,
फूकों से वो चराग़ बुझाए न जाएँगे.
अब वक़्त कुछ हिसाब करे तो मिले सुकूँ,
दिल से तो इतने घाव मिटाए न जाएँगे.
इतनी पिलाओगे जो नज़र की ये शोखियाँ,
यूँ पाँव पाँव चल के तो जाए न जाएँगे.
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