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तीरगी की आड़ ले कर रौशनी छुपती रही ...

इक पुरानी याद दिल से मुद्दतों लिपटी रही.
घर, मेरा आँगन, गली, बस्ती मेरी महकी रही.

 

कुछ उजाले शाम होते ही लिपटने आ गए,
रात भर ये रात छज्जे पर मेरे अटकी रही.

 

लौट कर आये नहीं कुछ पैर आँगन में मेरे,
इक उदासी घर के पीपल से मेरे लटकी रही.

 

उनकी आँखों के इशारे पर सभी मोहरे हिले,
जीत का सेहरा भी उनका हार भी उनकी रही.

 

चाँद का ऐसा जुनूं इस रात को ऐसा चढ़ा,
रात सोई फिर उठी फिर रात भर उठती रही.

 

रौशनी के चोर चोरी रात में करने चले,
तीरगी की आड़ ले कर रौशनी छुपती रही.



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