लोग तो चले गए मगर पते रहे.
याद के बुझे से तार छेड़ते रहे.
जल गया मकान हाथ सेकते रहे.
सब तमाशबीन बन के देखते रहे.
इस तरफ तो कर दिया इलाज़ दर्द का,
और घाव उस तरफ कुरेदते रहे.
फर्श पे गिरे हैं अर्श से जो झूठ के,
ख़्वाब इतने साल हमें बेचते रहे.
हार तय थी दिल नहीं था मानता मगर.
उनकी इक नज़र पे दाव खेलते रहे.
चिंदी चिंदी खत हवा के नाम कर दिया,
इस तरह से दिल वो मेरा छेड़ते रहे.
वो गए तो सबने पूछा माज़रा है क्या,
हम नई कहानी सबको पेलते रहे.
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