Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

मगर फिर भी वो इठलाती नहीं है ...

कोई भी बात उकसाती नहीं है
न जाने क्यों वो इठलाती नहीं है

 

कभी दौड़े थे जिन पगडंडियों पर
हमें किस्मत वहाँ लाती नहीं है

मुझे लौटा दिया सामान सारा
है इक “टैडी” जो लौटाती नहीं है

 

कहाँ अब दम रहा इन बाजुओं में
कमर तेरी भी बलखाती नहीं है

 

नहीं छुपती है च्यूंटी मार कर अब
दबा कर होठ शर्माती नहीं है

 

तुझे पीता हूँ कश के साथ कब से
तू यादों से कभी जाती नहीं है

 

“छपक” “छप” बारिशों की दौड़ अल्हड़
गली में क्यों नज़र आती नहीं है

 

अभी भी ओढ़ती है शाल नीली
मगर फिर भी वो इठलाती नहीं है



This post first appeared on स्वप्न मेरे ..., please read the originial post: here

Share the post

मगर फिर भी वो इठलाती नहीं है ...

×

Subscribe to स्वप्न मेरे ...

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×