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यूँ ही नज़रें गड़ाए रखिएगा

 ज़ख्म अपने छुपाए रखिएगा
महफ़िलों को सजाए रखिएगा

 

दुश्मनी है ये मानता हूँ पर   
सिलसिला तो बनाए रखिएगा

 

कुछ मुसाफिर ज़रूर लौटेंगे
एक दीपक जलाए रखिएगा

 

कल की पीड़ी यहाँ से गुजरेगी
आसमाँ तो उठाए रखिएगा

 

रूठ जाएँ ये उनकी है मर्ज़ी
आप पलकें बिछाए रखिएगा

 

काम जाएँ कब ये क्या जानें
आंसुओं को बचाए रखिएगा

 

शक्ल उनकी दिखेगी बादल में
यूँ ही नज़रें गड़ाए रखिएगा



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यूँ ही नज़रें गड़ाए रखिएगा

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