हम सवालों के जवाबों में ही बस उलझे रहे ,
प्रश्न अन-सुलझे नए वो रोज़ ही बुनते रहे.
हम उदासी के परों पर दूर तक उड़ते रहे,
बादलों पे दर्द की तन्हाइयाँ लिखते रहे .
गर्द यादों की तेरी “सेंडिल” से घर आती रही,
रोज़ हम कचरा उठा कर घर सफा करते रहे.
रोज़ हम कचरा उठा कर घर सफा करते रहे.
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तुम बुझा कर प्यास चल दीं लौट कर देखा नहीं,
हम “मुनिस्पेल्टी” के नल से बारहा रिसते रहे.
हम “मुनिस्पेल्टी” के नल से बारहा रिसते रहे.
कागज़ी फोटो दिवारों से चिपक कर रह गई,
और हम चूने की पपड़ी की तरह झरते रहे.
और हम चूने की पपड़ी की तरह झरते रहे.
जबकि तेरा हर कदम हमने हथेली पर लिया,
बूट की कीलों सरीखे उम्र भर चुभते रहे.
बूट की कीलों सरीखे उम्र भर चुभते रहे.
था नहीं आने का वादा और तुम आई नहीं,
यूँ ही कल जगजीत की ग़ज़लों को हम सुनते रहे.
यूँ ही कल जगजीत की ग़ज़लों को हम सुनते रहे.
कुछ बड़े थे, हाँ, कभी छोटे भी हो जाते थे हम,
शैल्फ में कपड़ों के जैसे बे-सबब लटके रहे.
शैल्फ में कपड़ों के जैसे बे-सबब लटके रहे.
उँगलियों के बीच में सिगरेट सुलगती रह गई,
हम धुंवे के बीच तेरे अक्स को तकते रहे.