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कृष्ण


बहाने से प्रश्न करता हूँ स्वयं से ... पर उलझ जाता हूँ अपने कर्म से ... असम्भव को सम्भव करने के प्रयास में फिर फंस जाता हूँ मोह-जाल में ... फिर सोचता हूँ, ऐसी चाह रखता ही क्यों हूँ ... चाहत का कोई तो अंत होना चाहिए ...

क्या मनुष्य
या सत्य कहूं तो ... मैं 
कभी कृष्ण बन पाऊंगा ... ? 

मोह-माया से दूर 
अपना-पराया मन से हटा 
निज से परे 
सत्य और धर्म की राह पर  
स्वयं को होम कर पाऊंगा 

क्या कृष्ण का सत्य जान जाऊंगा 
कर्म के मार्ग पर  
एक क्षण के लिए ही 
कृष्ण बन पाऊंगा ... ?


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कृष्ण

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