केंद्र में जितनी ताकत राष्ट्रपति के पास नहीं होती है, उससे कहीं अधिक ताकत राज्य में राज्यपाल के पास होती है। केंद्र में राष्ट्रपति सत्ताधारी प्रधानमंत्री की सलाह मानने के लिए बाध्य होता है किंतु राज्य में राज्यपाल बहुमत प्राप्त मुख्यमंत्री की भी सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं होता। तो देखा जाए अगर राज्य का राज्यपाल जागरुक सतर्क कर्तव्यपरायण है तो उसके रहते राज्य में कोई भी आराजकता कोई भी मनमानी सरकार और सरकार के मंत्रियों द्वारा करना बहुत ही मुश्किल होगा। किंतु उसी राज्यपाल के पद पर यदि कोई चापलूस काबिज हो तो उस स्थिति में राज्य को सरकार के अतिक्रमण से बचाने वाला कोई नहीं होगा। राज्य के राज्यपाल की जिम्मेदारी होती है कि वह राज्य में अराजकता ना फैलने दे किसी मंत्री को या फिर स्वयं सरकार को मनमानी करने से रोके।
यही हाल उत्तर प्रदेश का है अगर राज्यपाल चापलूस ना होकर एक जागरूक और एक कर्तव्यपरायण व्यक्ति होता तो उत्तर प्रदेश में अनौपचारिक तौर पर पूर्व सरकार की जारी की हुई सरकारी पदों पर भर्तियां जांच के नाम पर नही रुकती। चुनी हुई नई सरकार इतनी मनमानी नहीं कर पाती और ना ही प्रदेश के युवाओं को इतनी परेशानी उठानी पड़ती। राज्यपाल की उदासीनता की वजह से ही अभी तक 11 माह होने के बावजूद प्रदेश सरकार आयोगों का गठन नहीं कर पाई है जिसकी वजह से लाखो युवा परीक्षाएं पास करके भी सारी प्रक्रियाएं पूरी कर के भी सड़कों पर रोजगार के इंतजार में बूढ़े हुए जा रहे हैं कईयों के परिवार टूट गए कईयों के कईयों के घर में आज भी चूल्हा एक वक्त ही जलता है कईयों के घर में खाने में सिर्फ रोटी और दाल ही होता है क्या पौष्टिक खाना क्या सजी हुई थाली सिर्फ नेताओं के लिए है नहीं ऐसा तो नहीं हो सकता लोकतंत्र में लोकतंत्र का अर्थ होता है जनता के द्वारा जनता के लिए चुनी हुई सरकार किंतु यहां पर उत्तर प्रदेश में पिछले 11 माह में प्रदेश सरकार ने सिर्फ अपने ऊपर से अपने मंत्रियों के ऊपर से खुद स्वयं मुख्यमंत्री के ऊपर से लगे हुए आपराधिक मामलों को गैर कानूनी तरीके से बगैर न्यायिक प्रक्रिया पूरी किए सारे मुकदमों को खत्म करने का प्रयास किया है। अगर वह मुकदमें गलत तरीके से लगाए गए तो मुमकिन है कि वह धारा ही गलत है लेकिन सरकार में बैठे मंत्री मुख्यमंत्री जनता के ऊपर से नियंत्रण नहीं खत्म करना चाहते जनता को किसी भी वजह से उठा कर जेल में डाल देना चाहते हैं। इसीलिए तो उन धाराओं को खत्म करने की जगह सिर्फ अपने ऊपर से लगे हुए मुकदमों को समाप्त करने का घिनौना कार्य किया गया है। और यह सब राज्यपाल के रहते हुए हुआ है। क्या राज्यपाल ने इस प्रकरण की सूचना राष्ट्रपति को दी है? और अगर राष्ट्रपति को यह सूचना मिली है, तो क्या राष्ट्रपति ने जनता के आंखों में धूल झोंकने वाले इस कार्य को मंजूरी दे दी है? जहां तक मुझे लगता है जब तक राज्यपाल और राज्य सरकार में 36 का आंकड़ा रहेगा तब तक प्रदेश की जनता के हितों का संरक्षण होता रहेगा अगर राज्यपाल कठपुतली की तरह कार्य करने लगेगा, अगर राज्यपाल मुख्यमंत्री का चापलूस बनकर रह जाएगा तो फिर जनता के हितों का संरक्षण बहुत ही मुश्किल है। क्योंकि राज्य सरकारें सिर्फ और सिर्फ आने वाले चुनाव में जीत कैसे हासिल हो इस पर ध्यान केंद्रित करती हैं। राज्य के राज्यपाल को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और पूर्ण निष्ठा के साथ अपने पद की प्रतिष्ठा और गरिमा को ध्यान में रखते हुए जनता के हितों का सम्मान करना चाहिए।
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अभिषेक प्रताप सिंह