अपने यहाँ आजकल नेताजी लोग जनता के लिए सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेकर रात तक, रात से लेकर सुबह तक और सुबह से फिर शाम तक बस यही गाना गुनगुना रहे हैं…
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क्यों पैसा पैसा करती है
क्यों पैसे पे तू मरती है
क्या बात है क्या चीज़ है पैसा
क्या बात है क्या चीज़ है पैसा
एक बात मुझे बतला दे तू
उस रब से क्यों नहीं डरती है
क्या होता है पैसे का
पैसे की लगा दूँ ढ़ेरी…..
मैं बारिश करदु पैसे की
जो तू हो जाए मेरी
मैं बारिश करदु पैसे की
जो तू हो जाए मेरी….
धरती-माई के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में सबसे बड़े पंचवर्षीय उत्सव का शंखनाद हो चूका हैं। कस्मे वादे प्यार वफ़ा के संग जुमलों की जोरदार बारिशं के वावजूद जनता बढ़ती गर्मियों से त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही हैं। इस उत्सव पर अपनी दुकान लगाने वाले विभिन्न छाप के सीईओ और एमडी ने क्षेत्रानुसार डीलर, डिस्ट्रीब्यूटर व वितरक की नियुक्ति कर ली हैं और कईयो का सिलसिला जारी हैं। नियुक्ति से वंचित नाराजो की भगदड़ जारी हैं। इस चुनावी दुकानदारी में कोई किसी के पीछे छूटना नहीं चाहता, फलस्वरूप नाना प्रकार के प्री और पोस्ट चुनाव डिस्काउंट, गारंटी और वारंटी के कस्मे वादे किये जा रहे हैं।
मतदाता से विक्रेता बनी जनता के मुँह में भी मुफ्तखोरी का खून लग चूका हैं। फ्री-फ्री-फ्री…. दवाई-दारू, बिजली-पानी, लोन से टेलीफ़ोन और मोबाइल फोन के बाद अब मत-विक्रेताओं को रूपये-पैसे भी फ्री में चाहिए। अब जहाँ जैसी डिमांड होगी, सप्लाई भी उतनी ही स्वाभाविक हैं।
चुनाव जीतने के लिए किसानों के कर्ज माफ करने के नाम पर विगत कुछ वर्षो से पैसे बाटने की एक नवीन परंपरा का आगाज हुआ हैं। पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में किसानों की कर्जमाफी के बाद पुरे देश में चुनाव जीतने के लिए किसानों की कर्जमाफी चुनावी लॉलीपॉप सा हो गया हैं। मतदाताओं का एक वर्ग अब कृषक लोन लेने और लोन चुकाने हेतु सरकार बदलने में विश्वास रखता हैं।
अब बात करते हैं, मोदीजी के कारनामे की। देशभर के किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (पीएम किसान) के तहत मिलनेवाली सालाना 6 हजार रुपये की पहली किस्त के रूप में 2 हजार रुपये मिल चुके हैं। वही दूसरी किस्त 10 मार्च से पहले इस योजना में रजिस्टर्ड किसानों को 1अप्रैल से मिलने लगेगी। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम खासतौर से किसानों के लिए है। जिसमें किसानो को साल में 6 हज़ार रूपए नकद मिलेंगे। 6 हज़ार की ये रकम 2-2 हज़ार की तीन किस्तों में मिलेगी।
बड़े-बुजुर्ग कह गए कि परिश्रम का फल मीठा होता है.. लेकिन भैया, अपने यहाँ तोह चुनाव का फल मीठा होता हैं। अब हाल ही में अपने राहुल भैया ने चुनावी वादे का धमाकेदार ऐलान किया हैं। अगर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई तो कांग्रेस देश के 5 करोड़ गरीब परिवारों को हर साल 72 हजार रुपये देगी। Minimum Income Guarantee योजना को राहुल जी ने भारत के गरीबों के साथ सबसे बड़ा न्याय बताया है। अंधेरे में शराब और पैसा बांटकर चुनाव जीतने की परंपरा के कई कदम आगे आकर अब ये पैसा दिन के उजाले में खुलेआम, प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बांटा जा रहा है और सीधे उनके बैंक अकाउंट में डाला जा रहा है।
पहले मुझे लगता था, कि ये पैसा बाटने वाले नेता लोग कितने अच्छे और परोपकारी हैं न जी। जो पार्टी व अपने जेब से एक रुपए किलो में गेहूं और दो रुपए किलो में चावल देकर गरीबो पर युही लुटा देते हैं। फिर एक दिन 28% जी एस टी वाला बिल और हजारो रूपये का आयकर हाथ लगा।
प्रश्न स्वाभाविक हैं, हम करदाताओं की मेहनत की कमाई पर राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति क्यों और कब तक ? क्या हमारे टैक्स का पैसा राजनीतिक दलों की जागीर है ? यदि उनमें दम है और वह वोट बैंक की राजनीति वाली ऐसी योजनाएं लाना ही चाहते हैं तो अपने पार्टी फंड से यह सब करके दिखाएं।
अभी तो भैया, गरीब वर्ग में शामिल हो जाना ही सबसे अच्छा प्रतीत हो रहा है। बैठे-बैठे गेहूं, चावल, बिजली, इलाज, बच्चों को सरकारी स्कूल में प्रवेश, लोन लेकर चुकाने का झंझट नहीं और तो और अब बैंक खाते में पैसे भी मिल जाएंगे।