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इश्क की गाथा इतिहास बन जाये।

हवा में कल वाली बात नहीं
सुहाने लम्हों का आज साथ नहीं
गजलों में हकीकतों का हिसाब नहीं
परवाह करने वाले ही जब पराये हो
फिर सावन-भादों में भी बूंदो की प्यास नहीं।

मुसाफिरों सी टकराहट हुई थी
होठों पर हंसी की मिलावट हुई थी
दोस्ती की रूह पर, भरोसे की सजावट हुई थी
मोहब्बत, पाकीजा, दीवानगी, सादगी,
हुस्न, कशिश, दिलकश, हया, इबादत…
जाने कितने अल्फाजों से मुलाकात हुई थी
यादें – बातें जोड़ते-जोड़ते, आँखों से बरसात हुई थी।

नजरे चाहती हरदम दीदार करना
दिल चाहता हरदम प्यार करना
हाथ चाहतीं तेरी उंगलिया थामना
ख्वाहिश तो, बस इतनी हैं
तेरी बाँहों में पनाह मिल जाएं
जुदाई से पहले शाम हो जाये
हमारे इश्क की गाथा इतिहास हो जाये।



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