2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में सात वर्ष और उससे अधिक उम्र के व्यक्ति जो किसी भी भाषा में समझ के साथ पढ़ और लिख सकते हैं, साक्षर माना जाता है। जो व्यक्ति केवल पढ़ सकता है लेकिन लिख नहीं सकता, साक्षर नहीं है। इसके अतिरिक्त, एक व्यक्ति को साक्षर के रूप में दर्जा प्राप्ति हेतु कोई औपचारिक शिक्षा या न्यूनतम योग्यता प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
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1991 से पहले आयोजित जनगणना में 5 साल से कम उम्र के बच्चों को अशिक्षित माना जाता था।
1991 की जनगणना में यह निर्णय लिया गया था कि परिभाषा के अनुसार आयु वर्ग 0-6 के सभी बच्चे निरक्षर के रूप में अंकित माना जायेगा और सात साल और उससे अधिक उम्र की आबादी केवल साक्षर या अशिक्षित के रूप में वर्गीकृत की जाएगी।
2001 और 2011 के जनगणना में उपरोक्त वर्णित मानदंड बरकरार रखा गया।
2001 में देश की साक्षरता दर 65.38 प्रतिशत थी जो 2011 में बढ़कर 74.04 प्रतिशत हो गई। वर्षो के पराधीनता के कलंक को धोने के उपरांत 1951 में 18 प्रतिशत साक्षरता दर से हुई शुरुआत ने वर्तमान में आकड़ो में लगभग चार गुनी प्रगति के संग एक हिमालय की चढाई कर चुकी हैं, फिर भी एवेरेस्ट अभी हमारे लिए अक्षुण्य बना हैं। 2011 में बढ़कर 74.04 प्रतिशत हुई साक्षरता दर में पुरूष साक्षरता दर और महिला साक्षरता दर का योगदान क्रमशः 82.14 और 65.46 प्रतिशत है।
अब तनिक चर्चा करते हैं सरकार की सांख्यिकी विभाग द्वारा विगत दिनों वर्ष 2018 के लिए भारतीय शिक्षा व्यवस्था के पोस्टमार्टम उपरांत जारी Educational Statistics at a Glance 2018 रिपोर्ट पर। शैक्षिक संस्था से सम्बंधित आंकड़े…
विभिन्न शैक्षिक स्तरों में विद्यार्थियों के नामांकन की स्थिति…
पोस्टमार्टम की प्रक्रिया जारी है…कृपया अगले अंक हेतु क्षणिक प्रतीक्षा करें।