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कैसे हुई नागो की उत्पत्ति, जानिए पुराणो में वर्णित नागो के बारे कुछ अनकही बातें

पुराणो में वर्णित नागो के बारे कुछ अनकही बातें



दोस्तों आज हम आपके पास नागो से जुडी कुछ बातें ले कर आये है, जिसमे हम आपको नागो की उत्पति कैसे हुई इसके बारे में पूरा विस्तार से बताएँगे.

जिस की हमने सिर्फ बड़े बड़े नागो के नाम ही सुने है, जैसे की शेषनाग, तक्ष्क्नाग, वासुकी नाग, धृतराष्ट्र नाग, कर्कोटक नाग, कलि नाग वगेरा वगेरा और जिसका वर्णन पुराणों में मिलता है.

पर आज हम आपको उन सब नागो की उत्पत्ति कैसे हुई उसके बारे में विस्तार से बताने वाले है पर पहले हम आपको ये पराक्रमी नागों के पृथ्वी पर जन्म लेने से सम्बंधित कुछ कहानीयो के बारे में बताते है.

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ये कथा जो में आपको बताने वाला हु ये कई युगों से हमारे बिच सुनी-सुनाई जा रही है जिसका वर्णन वेदव्यास जी ने स्वयं महाभारत काल में किया था. कुछ लोगो का मानना है की ये महाभारत काल की घटना है पर एसा बिलकुल नहीं है तो सच क्या है आइये हम आपको बताते है.


नागो की उत्पत्ति :



दक्ष प्रजापति की दो पुत्रिया थी कद्रू और विनता जिसका विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ था. एक बार कश्यप मुनि प्रस्सन होकर अपनी दोनों पत्नियों को वरदान मांगने के लिए कहा. जिससे कद्रू ने सहस्र सर्पो की मा बनने का वरदान माँगा और विनता ने सिर्फ दो पूत्रो का वरदान माँगा जो की कद्रू के पुत्रो से भी अधिक शक्तिशाली हो और पराक्रमी और सुंदर हो. जिससे कश्यप मुनि ने खुश हो कर कद्रू को 1000 अंडे दिए और विनता को 2 अंडे दिए.

पुराणों में भी कई नागो का वर्णन मिलता है जैसे की वासुकी, कोटक, नागेश्वर, शेष, पद्म, कंबल,धृतराष्ट्र, पाल, तक्षक, पिंगल, और महा नाग आदि का वर्णन मिलता है.


शेषनाग:

कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग थे जिसको अनंत के नाम से भी जाना जाता है. जब शेषनाग को पता चला की उनकी माता और भाइयो में मिलकर विनता के साथ चल-कपट किया है तो वे अपनी माँ और भाइयो को छोड़ कर गंधमादन पर्वत पर तपश्या करने के लिए चले गए और तपस्या से प्रसन होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया की तुम्हारी बिद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी.

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ब्रह्मा ने शेषनाग को प्रसन हो कर एक और बात कही की यह पृथ्वी निरंतर हिलती और दुलती रहती है तो तुम अपनी फन पर उस प्रकार धारण करो की वे स्थिर हो जाये. तो इस प्रकार शेषनाग में अपनी फन पर पूरी पृथ्वी को धारण कर लिया. पुराणों के मुताबिक भगवान् विष्णु शेषनाग के आसन पर ही बिराजित है, और पुराणों में वर्णित है की श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम और श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण शेषनाग के ही अवतार है.



तक्षक नाग :

तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है की तक्षक पातालवासी आठ नागो में से एक है. शृंगी ऋषि के श्राप के कारण तक्षक ने परीक्षित को डसा था और उनकी मृत्यु हो गयी थी. और इस बात का बदला लेने के लिए परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने एक सर्प यज्ञ करवाया और उसमे अनेक सर्प आ कर गिरने लगे यह देख कर तक्षक इंद्रा की शरण में चला गया.



और जैसे ही यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों ने तक्षक का नाम ले कर आहुति यज्ञ में डाली तो तक्षक देवलोक के यज्ञ कुंड में गिर गया. तभी ही आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रो से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया तभी आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ को रोक दिया और तक्षक के प्राण भी बच गए.
अगर ग्रंथो की माने तो तक्षक ही भगवान् शिव के गले में लिपटा हुआ रहता है.


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वासुकि नाग:

अनेक ग्रंथो में वासुकी को ही नागो का राजा बताया गया है, और ये भी महर्षि कश्यप और कद्रू के ही संतान थे. जब माता कद्रू ने नागो को सर्प यज्ञ में भष्म होने का श्राप दिया तब नाग जाती को बचने के लिए वासुकी बहुत ही चिंतित हुए और तभी एलापत्र नाम के एक नाग ने उन्हें बताया की आपकी बहन जरत्कारू से उत्पन पुत्र ही ये सर्प यज्ञ को रूक पायेगा.


तभी नागराज वासुकी ने अपनी बहन का विवाह ऋषि जरत्कारू से करवा दिया और समय आने पर जरत्कारू ने आस्तिक नामक विद्वान् पुत्र को जन्म दिया. आस्तिक ने ही प्रिय वचन कह कर राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंध करवाया. अगर धर्म ग्रंथो की माने तो समुद्र मंथन के अनुसार नागराज वासुकी की नेति बने थी और वो त्रिपुरदाह के समय वासुकी ही शिव धनुष की डोर बने थे.


कालिया नाग:

श्रीमदभगवात के अनुसार कालिया नाग यमुना नदी के अंदर अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था. उनके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था. जिससे भगवान् श्री कृष्ण और कालिया नाग में बिच भयंकर युद्ध हुआ और कृष्ण ने कालिया नाग को परास्त कर दिया तभी कृष्ण ने कालिया नाग को कहा की तुम सब यमुना नदी को छोड़ कर कही और जगह पर निवास करो. एसा श्री कृष्ण के कहने पर कालिया नाग ने परिवार सहित यमुना नदी को छोड़ कर कही और चला गया.


कर्कोटक नाग:

कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं की माने तो सर्पो की माँ कद्रू ने जब नागो को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत हो कर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में शंखचूड महिपुर राज्य में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, कालिया नाग यमुना में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में ताप करने के लिए चले गए.

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कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महा माया के सामने स्थित लिंग की स्तुति की तभी भगवान् शिव ने प्रस्सन होकर कहा की जो भी नाग धर्म का आचरण करते है उनका विनाश नहीं होगा. और इसके उपरांत कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में समा गया. और तभी से उस लिंग को कर्कोतेश्वर के नाम से जाना जाता है. एक मान्यता है की जो भी लोग पंचमी, चतुर्दशी या फिर रविवार के दिन कर्कोतेश्वर शिवलिंग की पूजा करते है उनको सर्प पीड़ा नहीं भुगतनी पड़ती.


धृतराष्ट्र नाग:

ये नाग को वासुकी का पुत्र बताया गया है, महाभारत काल में जब युधिस्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ किया तब अर्जुन और उनके पुत्र के बिच युद्ध हुआ तभी ये ब्रभुवाहन ने अर्जुन का वध कर दिया तभी उनको अपनी गलती का पच्याताप हुआ और किसी ने बताया की संजीवन माहि से उनके पिता पुनः जीवित हो सकते है तो वो उस मणि की खोज में निकल गया.

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और ये मणि शेषनाग के पास थी, पर उनकी रक्षा का भार उन्होंने धृतराष्ट्र नाग को सोंप के सखा था. तभी ब्रभुवाहन ने उस मणि को माँगा तो धृतराष्ट्र ने देने से इंकार कर दिया जिससे धृतराष्ट्र और ब्रभुवाहन के बिच में युद्ध हो गया और ब्रभुवाहन ने धृतराष्ट्र से मणि को छीन लिया बाद मे मणि के उपयोग से से अर्जुन पुनर्जीवित हो गए.


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