ऋग्वेद - जिन्हें पुरुष कहते हैं वे वस्तुत: स्त्री हैं-----
स्त्रिय: सतीस्तां उ मे पुंस आहु: पश्यदक्षण्वान्न बिचेतदन्ध:।
प्रकृति की रचना में प्रत्येक पुरुष के भीतर स्त्री और प्रत्येक स्त्री के भीतर पुरुष की सत्ता है। ऋग्वेद में अस्यवामीय सूक्त में कहा है—जिन्हें पुरुष कहते हैं वे वस्तुत: स्त्री हैं; जिसके आँख हैं वह इस रहस्य को देखता है; अंधा इसे नहीं समझता।
स्त्रिय: सतीस्तां उ मे पुंस आहु: पश्यदक्षण्वान्न बिचेतदन्ध:।
प्रकृति की रचना में प्रत्येक पुरुष के भीतर स्त्री और प्रत्येक स्त्री के भीतर पुरुष की सत्ता है। ऋग्वेद में अस्यवामीय सूक्त में कहा है—जिन्हें पुरुष कहते हैं वे वस्तुत: स्त्री हैं; जिसके आँख हैं वह इस रहस्य को देखता है; अंधा इसे नहीं समझता।
आरण्यक ---
अन्नं हि भूतानां ज्येष्ठम - अन्न ही सभी भूतों में श्रेष्ठ है। अन्न ही बह्म है। तप यानि खेती के कर्म से ब्रह्म यानि अन्न को जानिए।
यजुर्वेद ---
परम चैतन्य की कोई प्रतिमा-मूतिै नहीं है - न तस्य प्रतिमा अस्ति।
इयमुपरि मति: - यह बुद्धि ही सर्वोपरि है।
यजुर्वेद ---
परम चैतन्य की कोई प्रतिमा-मूतिै नहीं है - न तस्य प्रतिमा अस्ति।
इयमुपरि मति: - यह बुद्धि ही सर्वोपरि है।
तैत्तिरीय ब्राह्मण -----
मनुष्य ने ही अमृत खोजा - अजीजनन्नमृतं मर्त्यास:।
जो दिख रहा वही सत्य है - चक्षुर्वे सत्यम।
विद्वान खुद में होम करते हैं, दूसरे यानि अग्नि में नहीं - आत्मन्येव जुह्वति, न परस्मिन।
मनुष्य ने ही अमृत खोजा - अजीजनन्नमृतं मर्त्यास:।
जो दिख रहा वही सत्य है - चक्षुर्वे सत्यम।
विद्वान खुद में होम करते हैं, दूसरे यानि अग्नि में नहीं - आत्मन्येव जुह्वति, न परस्मिन।
आदिगुरु शंकराचार्य – मैं सदैव समता में स्थित हूँ-----
अहम् निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुव्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम |
सदा मे समत्वं न मुक्ति: न बंध:
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||6||
मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक, सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूँ, मैं सदैव समता में स्थित हूँ, न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ।
अहम् निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुव्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम |
सदा मे समत्वं न मुक्ति: न बंध:
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||6||
मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक, सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूँ, मैं सदैव समता में स्थित हूँ, न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ।
ऋग्वेद - सोमपान पर कांड - 10, सूक्त - 119, मंत्र - 9,11 में रोचक बातें हैं -----
मैं पृथिवी को जहां चाहूं, उठाकर रख सकता हूं, क्योंकि मैं अनेक बार सोमपान कर चुका हूं।
मेरा एक पक्ष स्वर्ग में स्थापित है तो दूसरा पृथिवी पर। क्योंकि मैं अनेक बार सोमपान कर चुका हूं।
मैं पृथिवी को जहां चाहूं, उठाकर रख सकता हूं, क्योंकि मैं अनेक बार सोमपान कर चुका हूं।
मेरा एक पक्ष स्वर्ग में स्थापित है तो दूसरा पृथिवी पर। क्योंकि मैं अनेक बार सोमपान कर चुका हूं।
ऋग्वेद - ----------------------
कभी दीन हीन न होने वाली पृथिवी ही स्वर्ग है, अंतरिक्ष है - अदितिद्योंरदितिरन्तरिक्षम।
भद्र स्त्री जनसमूह से पुरुष को मित्र के रूप में चुनती है - भद्रा वधूर्मवति यत सुपेशा:, स्वयं सा मित्रं वुनते जनेचित।
यह मेरा हाथ ही भगवान है - अयं मे हस्तो भगवानयं।
हम धन के स्वामी हों दास नहीं - वयं स्याम पतयो रयीणाम।
कभी दीन हीन न होने वाली पृथिवी ही स्वर्ग है, अंतरिक्ष है - अदितिद्योंरदितिरन्तरिक्षम।
भद्र स्त्री जनसमूह से पुरुष को मित्र के रूप में चुनती है - भद्रा वधूर्मवति यत सुपेशा:, स्वयं सा मित्रं वुनते जनेचित।
यह मेरा हाथ ही भगवान है - अयं मे हस्तो भगवानयं।
हम धन के स्वामी हों दास नहीं - वयं स्याम पतयो रयीणाम।
अनेक धर्म और भाषा वाले मनुष्यों को धरती एक समान धारण करती है - जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं नानाधर्माणां पृथिवी यथौकसम़।
पितरों की राह पर न चल - मानु गा: पितृन।
चावल और जौ स्वर्ग के पुत्र हैं, अमर होने के औषध - ब्रीहिर्यवश्च भेषजौ दिवस्पुत्रावमर्त्यो।
मन्युरिन्द्रो - उत्साह ही इन्द्र है - अथर्ववेद।।।
पितरों की राह पर न चल - मानु गा: पितृन।
चावल और जौ स्वर्ग के पुत्र हैं, अमर होने के औषध - ब्रीहिर्यवश्च भेषजौ दिवस्पुत्रावमर्त्यो।
मन्युरिन्द्रो - उत्साह ही इन्द्र है - अथर्ववेद।।।
मैं अन्न देवता ब्रम्ह से भी पूर्व जन्मा हूं - सामवेद।।।
अभय ही स्वर्ग है - स्वर्गो वै लोकोअभयम
विद्वान ही देव हैं - विद्वां सो हि देवा: - शतपथ ब्राह्मण।।।
विद्वान ही देव हैं - विद्वां सो हि देवा: - शतपथ ब्राह्मण।।।
अन्न ही विराट है - अन्नं वै विराट - एैतरेय ब्राह्मण।।।
निरे भौतिकवादी अंधकार में पहुंचते हैं, अध्यात्मवादी उससे भी गहरे अंधकार में पहुंचते हैं - इशावास्येनिषद।।।