ये नया युग - रवींद्र विक्रम सिंह
सुबह सुबह धुप के संग खिलते वो रंग,
पहली बारिश में भीगी मिट्टी की वो सुगन्ध,
हर समय वो चिड़ियों का साथ देना,
कभी कभी तितलियों का हमसे इतराना,
अब नही हमारे शहरों कस्बों में ...
अब बस हम अकेले रहते हैं,
जूझते रहते हैं नई मशीनो से चौके में,
ना सर्दी की सर्द पसंद है ना चैत की गर्मी ,
ना सावन के झूले हैँ ना भादों की बारिश,
बस मदहोश पड़े रहते हैं टीवी और ऐसी मे...
अब कहाँ खेलते हैं हमारे बच्चे गलियों में,
अब वो फेसबुक कंप्यूटर फ़ोन पर लगे रहते हैं,
अब कहाँ गंदे होते हैं उनके कपड़े,
कहाँ वो होली ईद दीपावली,
नये युग में हम सब कटे कटे से रहते हैं ....
अब बाप कहाँ डांट पाते हैं बच्चों को,
अब लड़के सोने से पहले आई लव यू बोलते हैं,
अब कहाँ शर्माती हैं लड़कियाँ बिना कपड़ों के,
अब पैट्रोल डीज़ल का रेट कौन पूछता है,
अब बस इंटरनेट कनैक्शन के झगड़े हैं...
कौन सोचता है अनाज कहाँ से आय,
कौन देखता है रातों में तार,
अब कौन ढूँढता है जुगूनुओँ की रोशनी,
अब बाल कटाने में भी फैशन के बहाने हैं,
अब बस फ़िल्मी हीरो पर मरती है जनता ...
ये नया युग है,
यहाँ जलाने के लिये लकड़ी नहीं,
साँस लेने के लिए साफ हवा नही,
डाइवोर्स होते रहते हैं रिश्ते,
यहाँ चादर है पर सोने के लिए जगह नही...
Translation in English:
This new era - Ravindra Vikram Singh
New Colours with rays of dawn,
Smell of soil in first rain,
Around the clock, chirping of birds
Times when butterfly flirts with us,
Such moments are no longer in our towns…
We live alone
Battling with new machines in kitchen,
We neither like cold winter or hot summers,
No the swings in spring, No rains of the season,
We are stuck with TV and AC...