हà¥à¤ˆ न ख़तà¥à¤® तेरी रहगà¥à¤œà¤¼à¤¾à¤° कà¥à¤¯à¤¾ करते - Hui Na Khatm Teri Rahguzaar Kya Karte
Azhar Iqbal Ghazal
हà¥à¤ˆ न ख़तà¥à¤® तेरी रहगà¥à¤œà¤¼à¤¾à¤° कà¥à¤¯à¤¾ करते
तेरे हिसार से ख़à¥à¤¦ को फ़रार कà¥à¤¯à¤¾ करते
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सफ़ीना ग़रà¥à¤•à¤¼ ही करना पड़ा हमें आख़िर
तिरे बग़ैर समà¥à¤‚दर को पार कà¥à¤¯à¤¾ करते
बस à¤à¤• सà¥à¤•à¥‚त ही जिस का जवाब होना था
वही सवाल मियाठबार बार कà¥à¤¯à¤¾ करते
फिर इस के बाद मनाया न जशà¥à¤¨ ख़à¥à¤¶à¥à¤¬à¥‚ का
लहू में डूबी थी फ़सà¥à¤²-à¤-बहार कà¥à¤¯à¤¾ करते
नज़र की ज़द में नठफूल आ गठ'अज़हर'
गई रà¥à¤¤à¥‹à¤‚ का à¤à¤²à¤¾ इंतिज़ार कà¥à¤¯à¤¾ करते
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अज़हर इक़बाल