जैसा की हम सभी जानते हैं की नारद मुनि भगवान् विष्णु के बहुत बड़े भक्त हैं, और पूरे दिन नारायण नारायण का जाप करते हैं। लेकिन एक बार नारद मुनि को इसी बात का घमंड हो गया कि इस पूरे ब्रह्माण्ड में उनसे बड़ा कोई विष्णु भक्त नहीं है और इसी बात को सत्यापित करने के लिए नारद जी भगवान् विष्णु के पास क्षीर सागर पहुंचे। क्षीर सागर में भगवान् विष्णु शेषनाग पर लेटे विश्राम कर रहे थे और माँ लक्ष्मी उनके पैर दबा रही थीं। नारद मुनि ने पहुंच कर भगवान् श्री हरी और माँ लक्ष्मी को प्रणाम किया। भगवान् ने भी नारद मुनि के हाल चाल पूछे तो मुनि ने हसते हुए कहा कि हे प्रभु आप तो अंतर्यामी हो, सर्वव्याप्त हो, आपको तो तीनो लोकों में क्या हो रहा है, सब पता है।
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कुछ देर पश्चात प्रभु ने नारद के आने का कारण पूछा तो नारद मुनि ने अपनी जिज्ञासा को ज़ाहिर करते हुए प्रभु से पूछा कि हे प्रभु वैसे तो आपकी कि भक्ति करना मेरा परम धर्म है लेकिन फिर भी मैं ये पूछना चाहता हूँ कि तीनों लोकों में आपका सबसे बड़ा भक्त कौन है। नारद मुनि मन ही मन में आश्स्वत थे कि प्रभु उन्ही का नाम लेंगे। नारद मुनि का प्रश्न सुनने के बाद प्रभु थोड़ा मुस्कराये और और पृथ्वी लोक की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वो देखो, वो है मेरा सबसे बड़ा भक्त। नारद मुनि ने देखा कि एक किसान अपने खेत जोत रहा है और बड़ी तल्लीनता से अपने काम में मस्त है।
किसान को देख कर नारद मुनि और माँ लक्ष्मी, दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ। माँ लक्ष्मी ने सोचा कि ये कैसे सबसे बड़ा भक्त हुआ, इसका ज़िक्र ना तो कभी प्रभु ने किया और ना ही कभी इसके बारे में सुना। और यही बात नारद मुनि सोचने लगे कि ये छोटा सा किसान मुझसे बड़ा भक्त कैसे हुआ। दोनों के मन कि जिज्ञासा प्रभु समझ गए और बोले कि ये किसान जब सुबह उठता है तो मुझे याद करता है, जब दोपहर को भोजन करता है तब मेरा नाम लेता है और रात को सोने से पहले मेरा नाम लेता है। इसलिए इन तीनों लोकों में सबसे बड़ा भक्त यही है।
ये सुनने के बाद तो माँ लक्ष्मी और नारद मुनि के मन में और भी सवाल उठने लगे। नारद ने सोचा कि मैं तो पूरे दिन प्रभु का स्मरण करता हूँ और पूरे दिन में लगभग हज़ारों बार प्रभु का नाम लेता हूँ फिर भी प्रभु कह रहे हैं ये किसान मुझसे बड़ा भक्त है, जबकि ये तो दिन में बस तीन बार प्रभु का नाम ले रहा है। नारद मुनि अब खुद को रोक नहीं पाए और प्रभु से कहा कि हे भगवन मैं तो इससे ज्यादा बार आपको याद करता हूँ फिर ये मुझसे बड़ा भक्त कैसे हो गया? तो प्रभु ने जवाब दिया कि वक़्त आने पर इस प्रश्न को जवाब मिल जायेगा। ऐसा सुन कर नारद मुनि प्रभु को प्रणाम करके चले गए। नारद मुनि वहां से चले तो गए लेकिन ये प्रश्न उनके दिमाग में घूमता रहा।
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काफी समय गुज़र गया लेकिन नारद मुनि को अपना जवाब नहीं मिला। और एक दिन प्रभु विष्णु ने नारद मुनि को याद किया, और नारद तत्काल ही प्रभु के सामने प्रकट हो गए। मुनि ने जब याद करने का कारण पूछा तो प्रभु ने नारद मुनि को एक कटोरा देते हुए कहा कि, हे नारद ये कटोरा पूरा तेल से भरा हुआ है और तुम्हे ये कटोरा लेकर तीनों लोकों के चक्कर लगा कर यहाँ आना है, और सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि तेल की एक बूँद भी नीचे ना गिरे। प्रभु ने आगे कहा कि ये एक धार्मिक अनुष्ठान है और तीनों लोकों की भलाई के लिए ऐसा किया जा रहा है और अगर एक भी बूँद कहीं गिर गयी तो ये अनुष्ठान पूरा नहीं होगा। ऐसा बोल कर प्रभु ने मुनि को जाने का आदेश दिया और मुनि वो तेल भरा कटोरा लेकर चल दिए।
अब नारद मुनि उस कटोरे को लेकर तीनों लोकों के चक्कर लगाने निकल पड़े। नारद मुनि बहुत संभल संभल कर चले जा रहे थे कि कहीं कोई बूँद ना गिर जाये। पहले उन्होंने स्वर्ग लोक का चक्कर लगाया फिर पृथ्वी लोक का और फिर पाताल लोक का। नारद बहुत धीरे और संभाल के चक्कर लगा के लौट के प्रभु के पास आ गये। और आकर प्रभु को कटोरा देते हुए बोले, हे भगवन मैंने आपका दिया हुआ कार्य संपन्न कर दिया और वो भी बिना तेल कि एक बूँद गिराये। प्रभु ने नारद मुनि के हाथ से कटोरा लेते हुए कहा कि हे नारद ये बताओ कि आज तुम्हारे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य क्या था? नारद ने जवाब दिया कि आपकी आज्ञा अनुसार तीनों लोकों के चक्कर लगाना बिना तेल कि एक भी बूँद गिराये। प्रभु ने फिर हंस कर पूछा कि आज तुमने हमे कितनी बार याद किया और कितनी बार नारायण नारायण बोला? अब नारद मुनि सोचने लगे कि प्रभु कि आज्ञा पूरी करने में मैं उनको याद करना ही भूल गया। मुनि ने बड़े संकुचाते हुए जवाब दिया प्रभु आज हम आपको याद नहीं कर पाये, हमारा पूरा ध्यान कटोरे पर था जिससे कि तेल ना गिरे।
तब प्रभु ने हंस कर नारद मुनि को बताया कि हे नारद ये कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, हम तो बस आपके प्रश्न का उत्तर दे रहे थे। जब तुम पर कोई काम नहीं होता तो पूरे दिन हमारा स्मरण करते हो लेकिन जैसे तुम्हे काम मिला तुम्हे हमे याद करना भूल गये। लेकिन देखो वो किसान, उसकी ज़िन्दगी हज़ारों जरूरी कार्यों से भरी पड़ी है। सुबह उठ कर अपने पशुओं को खाना खिलता है, अपने परिवार को संभालता है, अपने खेतों में काम करता है लेकिन कभी हमे याद करना नहीं भूलता। इसलिए हमने उस दिन तुम्हे बताया था कि हमारा सबसे बड़ा भक्त ये किसान है।
नारद मुनि को अपनी गलती का एहसास हो गया और उन्होंने प्रभु से क्षमा मांगी और नारायण नारायण कहते हुए वहां से चले गये। तब माँ लक्ष्मी ने प्रभु से कहा कि के प्रभु ये बात आप तब ही नारद जी को बता देते, इतना समय क्यों? तो भगवान् विष्णु ने हँसते हुए माँ लक्ष्मी से कहा, हे देवी अगर मैं तभी नारद को ये बता देता तो उसके मन में और भी सवाल उठते इसलिए नारद जी को साक्षात् प्रमाणित करना जरूरी था। इतना सुन कर माँ लक्ष्मी जी मुस्करायी और कहा, प्रभु आपकी महिमा अपरम्पार है।
सारांश:
इस कहानी से हमे दो सीख मिलती हैं। एक तो हमे कभी घमंड नहीं करना चाहिए और दूसरा सिर्फ प्रभु का नाम लेना ही भक्ति नहीं है, भक्ति वो है जो हमे किसी भी परिस्थिति में प्रभु को ना भूलने दे। किसान सिर्फ ३ बार प्रभु का नाम लेता था और नारद दिन में हज़ारों बार। लेकिन किसान अपनी व्यस्त दिनचर्या में भी प्रभु को याद करना नहीं भूलता था और नारद मुनि एक दिन में ही प्रभु को याद करना भूल गये।
लेखक: अलोक कुमार
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