सैनिक की अनकही कहानी (Poem on soldiers in Hindi)
तैयार खड़े है सरहद पर
दुश्मन का सर कलम करने को।
जान की बाज़ी लगाते है
महफूज़ रखते है हर नागरिक को।
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ठण्ड हो या गर्मी
या हो ज़ोरो की बरसात ।
ये रहते है हमेशा सरहद पर तैनात।
सियाचेन की बर्फ हो या राजेस्थान की गर्म रेत
रोक नहीं सकती इन्हें देश की सेवा करने से।
परवाह नहीं करते अपनी कभी भी
हमेशा सोचते है देश के सुरक्षा की।
शारीर चाहे थक चूका हो
पर भी नहीं हटते अपने लक्ष्य से।
तरसते है इनकी आँखे घरवालो को देखने के लिए
पर फिर भी ये अपने कंधे पर देश की सुरक्षा का भार लेके चले।
कभी बहन की विदाई तो कभी बाप को कन्धा देने नही गये
ये हर एक परिस्तिथि में सरहद पर ही टिके रहे।
तरस गयी आँखे बूढी माँ की इन्हें देखने के लिए
पर हर एक जंग मे माँ बाप का सर ऊँचा करते गये।
दुश्मन है बैठा ताक में
ये भी लगे उनके कदम आँकने
गोली की बौछार हुई
दुश्मन के सीने के पार हुई
पर खून इधर भी बिखरा था
लहू लुहान वो जवान भी हुआ था
पर हार कहाँ उसने मानी थी
बन्दुक दुश्मन पर तानी थी।
न एक दुश्मन कहीं बचा था
न देश को कुछ हुआ था
लक्ष्य तो पूरा हो गया
पर जान ले गया सैनिक की।
ना देख सका वो अपनों को
ना छू सका माँ के चरणों को
तरसती रह गयी बाहें बच्चों को ह्रदय से लगाने के लिए।
शहीद हो गया वो जवान देश की सुरक्षा के लिए
पर फिर भी उसके बच्चे तैयार है फ़ौज में जाने के लिए।
खुदकी जान दे कर
हमारी जान बचाते है।
हम आराम से घरों के सोते है
वो अपनी नींद उड़ाते है।
शिकन नहीं है माथे पर
ना ही मर जाने का डर है।
ये तो है वो शेरदिल
जो एक देवी माँ के कोख से जनम लेते है।
हम सुक्रगुज़ार है उन जवानों के
जिनकी वजह से निश्चिन्त हम रहते है
हमारा सलाम है उस माँ को जिनके कोख से जनम ये लेते है।
है तैनात खड़े ये सरहद पर
दुश्मन से हमें बचाने के लिए
सलाम है तुझे ऐ जवान बिन जाने भी जान बचाने के लिए।
हर रोज़ तैयार रहता है तू
दुश्मन की ईंट से ईंट बजने के लिए।
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