Nalanda University Story and History in Hindi – नालंदा बिहार शरीफ नगर से पटना के दक्षिण की तरफ से 95 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। नालंदा संस्कृत भाषा से लिया गया है इसका का मतलब संस्कृत में नालम्+दा से बना है। संस्कृत में ‘नालम्’ का अर्थ ‘कमल’ होता है। कमल ज्ञान का प्रतीक है। नालम्+दा यानी कमल देने वाली, ज्ञान। यहां महाविहार की स्थापना होने के बाद इसका नाम ‘नालंदा महाविहार‘ रखा दिया गया।
Related Articles
ऐसा माना गया है की बौद्धकाल में भारत शिक्षा का केंद्र था। बौद्ध विश्वविद्यालय नाम बहुत था जैसे की विक्रमशिला, तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) बहुत चर्चित था यहाँ दूर-दूर से लोग पढाई और रिसर्च करने आते थे। नालंदा विश्वविधालय के अतीत और उसके गौरवशाली इतिहास को सभी जानते हैं। सातवी शताब्दी से 1200 CE तक पढने का मुख्य स्थान था। इसके साथ-साथ यह यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी है।
कहां है नालंदा : Where is Nalanda University
नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 95 किलोमीटर, राजगीर से 12 किलोमीटर, बोधगया से 90 किलोमीटर (गया होकर), पावापुरी से 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस विश्वविद्यालय के खंडहरों को अलेक्जेंडर कनिंघम ने तलाशकर बाहर निकाला था जिसके जले हुए भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव की दास्तां बयां करते हैं।
नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास – Nalanda University History in Hindi
5 वी और छठी शताब्दी में नालंदा गुप्त साम्राज्य के शासनकाल में निखरकर सामने आयी और बाद में हर्ष और कन्नौज साम्राज्य में भी इसका उल्लेख हमें दिखायी देता है। इसके बाद वाले समय में भारत के पूर्वी भाग में पाल साम्राज्य में बुद्ध धर्म का तेजी से विकास होता गया।
शिखर पर होते हुए, यह स्कूल बहुत से विद्वानों और विद्यार्थियों को आकर्षित करती थी और इसके साथ ही तिब्बत, चाइना, कोरिया और मध्य एशिया से भी लोग यहाँ पढने के लिये आते थे। आर्कियोलॉजिकल तथ्यों से यह भी पता चला की इसका संबंध इंडोनेशिया के शैलेन्द्र साम्राज्य से भी था, जिसके एक राजा ने कॉम्प्लेक्स में एक मठ का निर्माण भी करवाया था।
नालंदा के बारे में ज्यादातर जानकारी पूर्वी एशिया से तीर्थ भिक्षुओ द्वारा लिखी गयी जानकारी से ही प्राप्त हुई, इन भिक्षुओ में वुँझांग और यीजिंग शामिल है जिन्होंने 7 वी शताब्दी में महाविहार की यात्रा की थी। विन्सेंट स्मिथ ने कहा था की, “नालंदा का पूरा इतिहास ही महायानी बौद्ध का इतिहास है।” अपने यात्रा किताब में उन्होंने नालंदा की बहुत सी चीजो और बातो का वर्णन भी किया है और साथ ही महायाना के दर्शनशास्त्र के भी वर्णन किया है। नालंदा के सभी विद्यार्थियों ने महायाना का और साथ ही बुद्धा के 18 संप्रदायों का भी अभ्यास कर रखा था। उनके पाठ्यक्रम में दुसरे विषय जैसे वेद, तर्क, संस्कृत ग्रामर, दवा ज्ञान और संख्या भी शामिल थे।
नालंदा विश्वविद्यालय का स्थापना काल: Founded Time of Nalanda University
इस महान नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्तकालीन सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 413-455 ईपू में की। इस विश्वविद्यालय को कुमारगुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग और संरक्षण मिला। ह्नेनसांग के अनुसार 470 ई. में गुप्त सम्राट नरसिंह गुप्त बालादित्य ने नालंदा में एक सुंदर मंदिर निर्मित करवाकर इसमें 80 फुट ऊंची तांबे की बुद्ध प्रतिमा को स्थापित करवाया।
संरक्षण : गुप्त वंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसके संरक्षण में अपना महत्वपूर्ण योगदान जारी रखा और बाद में इसे महान सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानीय शासकों..तथा विदेशी शासकों से भी इस विश्वविद्यालय को अनुदान मिलता था।
नि:शुल्क पढ़ाई (Free Education): नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) में शिक्षा, आवास, भोजन आदि का कोई शुल्क छात्रों से नहीं लिया जाता था। सभी सुविधाएं नि:शुल्क थीं। राजाओं और धनी सेठों द्वारा दिए गए दान से इस विश्वविद्यालय का व्यय चलता था। इस विश्वविद्यालय को 200 ग्रामों की आय प्राप्त होती थी।
विश्वविद्यालय का परिचय Indroction of Nalanda University:
अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी। अभी तक खुदाई में 13 मठ मिले हैं। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। मठों के सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की की मूर्तियां स्थापित थीं।
केंद्रीय विद्यालय में 7 बड़े कक्ष थे और इसके अलावा 300 अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे। प्रत्येक मठ के आंगन में एक कुआं बना था। 8 विशाल भवन, 10 मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थीं। जैन ग्रंथ ‘सूत्रकृतांग’ में नालंदा के ‘हस्तियान’ नामक सुंदर उद्यान का वर्णन है।
ये 3 प्रमुख पुस्तकालय थे (Top 3 Nalanda University Library): पुस्तकालयों में हस्तलिखित हजारों पुस्तकें और छपी हुई लाखों किताबें थीं। कई दुर्लभ पुस्तकों का भंडार था।
छात्र और शिक्षक (Student and Techer): यह विश्व का प्रथम पूर्णत: आवासीय विश्वविद्यालय था और विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2,000 थी। नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे। 7वीं सदी में ह्वेनसांग के समय इस विश्वविद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे, जो एक महान आचार्य, शिक्षक और विद्वान थे। प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट्ट भी इस विश्वविद्यालय के एक समय कुलपति रहे थे।
विश्वभर के छात्र पढ़ते थे : इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, श्रीलंका, फारस, तुर्की और ग्रीक से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म के साथ ही अन्य ज्ञान का प्रचार करते थे।
सभी विषय पढ़ते थे छात्र : नालंदा में बौद्ध धर्म के अतिरिक्त हेतुविद्या, शब्दविद्या, चिकित्साशास्त्र, अथर्ववेद तथा सांख्य से संबधित विषय भी पढ़ाए जाते थे। युवानच्वांग ने लिखा था कि नालंदा के एक सहस्र विद्वान आचार्यों में से 100 ऐसे थे, जो सूत्र और शास्त्र जानते थे तथा 500, तीन विषयों में पारंगत थे और 20, पचास विषयों में। केवल शीलभद्र ही ऐसे थे जिनकी सभी विषयों में समान गति थी।
छात्रों का चयन (Nalanda University Admission Process): विद्यार्थियों का प्रवेश नालंदा विश्वविद्यालय में काफी कठिनाई से होता था, क्योंकि केवल उच्च कोटि के विद्यार्थियों को ही प्रविष्ट किया जाता था। इसके लिए बाकायदा परीक्षा ली जाती थी।
बख्तियार खिलजी का इतिहास Bakhtiyar Khilji History in Hindi
इस विश्वविद्यालय की 4थी से 11वीं सदी तक अंतररराष्ट्रीय ख्याति रही थी, लेकिन बख्तियार खिलजी (Bakhtiyar Khilji) नामक एक सनकी मुस्लिम तुर्क लुटेरे ने 1199 ईस्वी में इसे जलाकर खाक कर दिया। विश्वविद्यालय के जलने से हजारों दुर्लभ पुस्तकें जलकर राख हो गईं। कई महत्वपूर्ण दस्तावेज नष्ट हो गए। ऐसा कहा जाता है की आग लगने के बाद भी तीन महीने तक पुस्तकें धू-धू करके जलती रहीं।
कहते हैं कि कई अध्यापकों और बौद्ध भिक्षुओं ने अपने कपड़ों में छुपाकर कई दुर्लभ पांडुलिपियों को बचाया तथा उन्हें तिब्बत की ओर ले गए। कालांतर में इन्हीं ज्ञान-निधियों ने तिब्बत क्षेत्र को बौद्ध धर्म और ज्ञान के बड़े केंद्र में परिवर्तित कर दिया।
आश्चर्य की बात यह है कि बख्तियार खिलजी सिर्फ 200 घुड़सवारों के साथ आया था और नालंदा विश्वविद्यालय में उस समय कम से कम 20,000 छात्र पढ़ रहे थे। निहत्थे और अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं ने कभी यह कल्पना भी नहीं कि थी कि इस विश्वविद्यालय को सुरक्षा की जरूरत भी होगी।
इस निर्लज बख्तियार खिलजी (Bakhtiyar Khilji) ने नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के पासपास रह रहे बौद्धों, अनेक धर्माचार्यों और निहत्थे बौद्ध भिक्षुओं को मार दिया और उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। हजारों बौद्ध भिक्षुओं का कत्ल कर दिया गया और हजारों भिक्षु श्रीलंका या नेपाल के तरफ पलायन कर गए।
खिलजी ने बिहार में चुन-चुनकर सभी बौद्ध मठों को नष्ट कर दिया था और लोगों को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर कर दिया था। नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) की हजारों जलाई गईं पुस्तकों के कारण बहुत-सा ऐसा ज्ञान विलुप्त हो गया, जो आज दुनिया के काम आता।
बख्तियार खिलजी (Bakhtiyar Khilji) धर्मांध और मूर्ख था। उसने ताकत के मद में बंगाल पर अधिकार के बाद तिब्बत और चीन पर अधिकार की कोशिश की किंतु इस प्रयास में उसकी सेना नष्ट हो गई और उसे अधमरी हालत में देवकोट लाया गया था। देवकोट में ही उसके सहायक अलीमर्दान ने ही खिलजी की हत्या कर दी थी।
बख्तियारपुर, जहां खिलजी को दफन किया गया था, वह जगह अब पीर बाबा का मजार बन गया है। दुर्भाग्य से कुछ मूर्ख हिन्दू भी उस लुटेरे और नालंदा के विध्वंसक के मजार पर मन्नत मांगने जाते हैं। दुर्भाग्य तो यह भी है कि इस लुटेरे के मजार का तो संरक्षण किया जा रहा है, लेकिन नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) का नहीं। कहते हैं कि यहां आने पर आप चाहें तो केवल 100 रुपए में सम्राट अशोक के वंशजों द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय की ईंटें उखाड़कर अपने साथ ले जा सकते हैं। अगर आपके पास और अधिक पैसे हों तो आप खंडहर में इधर-उधर बिखरे अन्य अवशेषों जैसे कोई प्रतिमा भी अपने घर तोहफे के रूप में ले जा सकते हैं।
नालंदा से जुडी इतिहासिक चीजे और बाते – Historical figures associated with Nalanda University
पारंपरिक सूत्रों के अनुसार महावीर और बुद्धा दोनों पाचवी और छठी शताब्दी में नालंदा आये थे। इसके साथ-साथ यह शरिपुत्र के जन्म और निर्वाण की भी जगह है, जो भगवान बुद्धा के प्रसिद्ध शिष्यों में से एक थे।
- आर्यदेव, नागार्जुन का विद्यार्थी
- अतिषा, महायाना और वज्रायण विद्वान
- चंद्रकिर्ती, नागार्जुन के विद्यार्थी
- नारोपा, तिलोपा के विद्यार्थी और मारप के शिक्षक
- धर्मकीर्ति, तर्क शास्त्री
- धर्मपाल
- दिग्नगा, बुद्ध तर्क के संस्थापक
- शीलभद्र, क्सुँझांग के शिक्षक
- क्सुँझांग, चीनी बौद्ध यात्री
- यीजिंग, चीनी बौद्ध यात्री
- नागार्जुन
- आर्यभट
पर्यटन–
अपने राज्य में नालंदा एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जो भारत ही नही बल्कि विदेशी लोगो को भी आकर्षित करता है। इसके साथ ही बुद्ध धर्म के लोग इसे पवित्र तीर्थ स्थल भी मानते है।
नालंदा मल्टीमीडिया म्यूजियम Nalanda Multimedia Museum –
नालंदा में हमें एक और वर्तमान तंत्रज्ञान पर आधारित म्यूजियम देखने को मिलता है। जिनमे में 3 डी एनीमेशन के सहारे नालंदा के इतिहास से संबंधित जानकारियाँ हासिल कर सकते है।
क्सुँझांग मेमोरियल हॉल –
प्रसिद्ध बुद्ध भिक्षु और यात्रियों को सम्मान देने के उद्देश्य से क्सुँझांग मेमोरियल हॉल की स्थापना की गयी थी। इस मेमोरियल हॉल में बहुत से चीनी बुद्ध भिक्षुओ की प्रतिमाये भी लगायी गयी है।
नालंदा आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम Nalanda Archaeological Museum –
भारतीय आर्कियोलॉजिकल विभाग ने पर्यटकों के आकर्षण के लिये यहाँ एक म्यूजियम भी खोल रखा है। इस म्यूजियम में हमें नालंदा के प्राचीन अवयवो को देखने का अवसर मिलता है। उत्खनन के दौरान जमा किये गए 13, 463 चीजो में से केवल 349 चीजे ही म्यूजियम में दिखायी जाती है।
Note: इसमें कुछ महत्वपूर्ण जानकारी webdunia.com से लिया गया है
The post नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास – Nalanda University History in Hindi appeared first on Zuban.in.