सावन का मौसम ,आता है करने को
प्रकृति का श्रृंगार ,धरती माँ को देने को
शीतलता ,सावन में आसमान से जल जी भर के है बरसता ।
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वर्षा ऋतु में प्रकृति भी होकर आनन्दित
मानो खिलखिला रही है , वर्षा ऋतु में धरती माता का
मंगल स्नान ,प्रकृति करती है ,स्वयम जल अभिषेक
चुहुँ और स्वच्छता ही स्वछता ,सारा मैल बह जाता है
वर्षा के जल संग सब निर्मल हो जाता है
वृक्षों का रूप और निखरता ,पत्ता-पत्ता डाली-डाली
फल-फूल सभी आनन्दित ।
धरती माँ के सौंदर्य में चार चाँद लगाने
धरती ने ओढ़ी हरियाली की चादर
वृक्षों की डालियों में पड़ गये हैं झूले
नाचे मोर ,कोयल कूके ,वर्षा ऋतु है
प्रकृति की सखी देखो प्रकृति की
स्वच्छ ,निर्मल ,हंसी होकर आनन्दित
वर्षा और प्रकृति दोनों ही खिलखिलाकर
हँस रही ।।।।।
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