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भुवनेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर “लिंगराज मंदिर” | Lingaraja Temple History

Lingaraja Temple – लिंगराज मंदिर भगवान हरिहर को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। जो भगवान शिव और विष्णु का ही एक रूप हैं। यह मंदिर पूर्वी भारतीय राज्य ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है और साथ ही भारत के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। भुवनेश्वर शहर की यह सबसे मुख्य और आकर्षक जगह है और साथ ही ओडिशा राज्य घुमने आए लोगो के आकर्षण का यह मुख्य केंद्र है।

भुवनेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर “लिंगराज मंदिर” – Lingaraja Temple History

लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर है। मंदिर का सेंट्रल टावर 180 फीट ऊँचा है। यह मंदिर कलिंग की वस्तुकला और मध्यकालीन एतिहासिक परंपरा का प्रतिनिधित्व भी करता है।

माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी साम्राज्य के राजा ने करवाया था और फिर बाद में गंगा शासको ने इसकी मरम्मत भी करवाई थी। इस मंदिर का निर्माण देउला अंदाज में किया गया है, जिसके चार अवयव है, जिनका नाम जगमोहन (प्रार्थना कक्ष), भाग-मंडप (प्रसाद का कक्ष), नाटमंदिर (उत्सव हॉल) और विमान (पवित्र स्थान का निर्माण), इनमे से हर एक अवयव अपने पिछले वाले अवयव से आकार में बड़ा है। मंदिर के क्षेत्र में आस-पास 50 दुसरे मंदिर भी है, जो परिसर की बड़ी दीवार से संलग्नित है।

भुवनेश्वर को एक्मारा क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, क्योकि कहा जाता है की एक्मारा पुराण के अनुसार यहाँ आम के पेड़ (एक्मारा) के निचे भगवान लिंगराज के दर्शन हुए थे।

एक्मारा पुराण 13 वी शताब्दी का एक संस्कृत निबंध है। पूजा-अर्चना करने में यह मंदिर हमेशा सक्रीय रहता है, भुवनेश्वर में हमें भगवान शिव के ऐसे कई मंदिर मिलेंगे जहाँ हरिहर के रूप में उनकी पूजा की जाती है, भगवान हरिहर को विष्णु और शिव का मिलाप ही कहा जाता है। इस मंदिर में विष्णु की भी प्रतिमा है, कहा जाता है की इस प्रतिमा को गंगा शासको ने यहाँ स्थापित किया था, जिन्होंने 12 वी शताब्दी में पूरी में जगन्नाथ मंदिर का भी निर्माण करवाया था।

लिंगराज मंदिर का व्यवस्थापन आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) और मंदिर ट्रस्ट बोर्ड द्वारा किया जाता है। औसतन 6000 से ज्यादा श्रद्धालु हर दिन मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए आते है और त्योहारों के समय तो यहाँ प्रति दिन लाखो लोग भगवान के दर्शन के लिए आते है।

मंदिर में भगवान का शिवरात्रि उत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है, 2012 की जानकारी के अनुसार शिवरात्रि के दिन यहाँ तक़रीबन 2,00,000 यात्री आए थे।

इतिहास – History:

लिंगराज का अर्थ असल में लिंगम के राजा से होता है, जो यहाँ भगवान शिव को कहा गया है। वास्तव में यहाँ भगवान शिव की पूजा पहले किर्तिवास के रूप में की जाती थी और बाद में उनकी पूजा हरिहर के नाम से की जाने लगी और भुवनेश्वर में उन्हें त्रिभुवनेश्वर (या भुवनेश्वर) भी कहा जाता है। त्रिभुवनेश्वर का अर्थ तीनो लोको के स्वामी से होता है। इन तीनो लोको में धरती, स्वर्ग, और पातालकोट शामिल है। भगवान शिव की पत्नी को यहाँ भुवनेश्वरी कहा जाता है।

कहा जाता है की वर्तमान मंदिर के आकार का निर्माण प्राचीन समय में किया गया था। मंदिर के कुछ भाग का निर्माण छठी शताब्दी में किया गया है, क्योकि इनका वर्णन हमें सांतवी सदी के संस्कृत लेखो में दिखाई देता है।

फर्ग्युसन का मानना है की इस मंदिर की शुरुवात ललाट इंदु केशरी ने 615 से 657 CE में की थी। इसके बाद जगमोहन (प्रार्थना कक्ष), मुख्य मंदिर और मंदिर के टावर का निर्माण 11 वी शताब्दी में किया गया है, जबकि भोग-मंडप का निर्माण 12 वी शताब्दी में किया गया है। इसके बाद 1099 और 1104 CE के बीच शालिनी की पत्नी ने नाटमंदिर का निर्माण करवाया था।

समय के साथ-साथ लिंगराज मंदिर का पूरा निर्माण हो चूका था, और फिर यहाँ जगन्नाथ (विष्णु का रूप) की प्रतिमा भी स्थापित की गयी थी। कहा जाता है की विष्णु और शिव दोनों के ही रूप इस मंदिर में बसते है।

लिंगराज मंदिर के उत्सव – Lingaraja Temple Festival:

हिन्दू मान्यताओ के अनुसार, लिंगराज मंदिर से होकर एक नदी गुजरती है। इस नदी के पानी से मंदिर का बिन्दुसार टैंक भरा जाता है और कहा जाता है की यह पानी शारीरिक और मानसिक बीमारियों को दूर करता है। लोग अक्सर इस पानी को अमृत के रूप में पीते है और उत्सव के समय लोग इस टैंक में स्नान भी करते है। मंदिर की मुख्य मूर्ति लिंगराज की पूजा, भगवान शिव और विष्णु दोनों ही रूप में की जाती है। मंदिर में हिंदुत्व, शिवत्व और वैष्णत्व के बीच सामंजस्य हमें भली-भांति दिखाई देता है।

मंदिर में मनाया जाने वाला मुख्य त्यौहार शिवरात्रि है। जो हर साल फाल्गुन के महीने में हजारो, लाखो श्रद्धालु एकसाथ मनाते है। पुरे दिन उपवास करने के अलावा शिवरात्रि के दिन लिंगराज को बेल पत्ती भी चढ़ाई जाती है। शिवरात्रि का मुख्य पर्व रात में मनाया जाता है, जब सारे श्रद्धालु रात भर भगवान का पाठ करते है। मंदिर के शिखर पर जब महादीप ज्योतिमग्न होता है, तभी भक्त उपवास छोड़ते है।

कहा जाता है की इस दिन भगवान शिव ने राक्षस का वध किया था और तभी से यह दिन शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। श्रावण मास में सुबह-सुबह हजारो लोग महानदी से पानी भरकर लाते है और रास्ते में पैदल चलकर मंदिर आते है। इसके साथ-साथ राजा-महाराजो के समय से ही यहाँ भाद्र महीने में सुनियन दिवस मनाया जाता है, इस दिन मंदिर के नौकर, किसान और दुसरे लोग लिंगराजा को निष्ठा और श्रद्धांजलि अर्पित करते है।

इसके साथ-साथ मंदिर में चंदन यात्रा नाम का 22 दिनों तक चलने वाला त्यौहार मनाया जाता है, जब के नौकर खुद को बिन्दुसार टैंक में अवगत करा देते है। साथ ही मंदिर के देवताओ और नौकरों को गर्मी से बचाने के लिए उनपर चंदन का लेप भी लगाया जाता है। इसके साथ-साथ महिलाए त्यौहार के दिन भगवान शिव के पारंपरिक नृत्य का प्रदर्शन भी करती है।

हर साल लिंगराज की रथ यात्रा अशोकअष्टमी के दिन निकलती है। जिसमे देवताओ को रथ में बिठाकर रामेश्वर के देवला मंदिर ले जाया जाता है। वास्तव में अत्यंत सुशोभित और फूलो से सज्ज रथ में लिंगराज की मूर्ति का उनकी बहन रुक्मणि के साथ स्थानापन्न किया जाता है।

मंदिर में हिन्दू जाती के लोगो को ही प्रवेश दिया जाता है, गैर हिन्दू लोगो को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नही है। लेकिन गैर हिन्दू लोग भी बाहर से मंदिर के दर्शन कर सकते है।

साथ ही मंदिर की पवित्रता को बरक़रार रखने के लिए यहाँ स्नान न किये हुए, मासिक धर्म के समय महिला और जिनके घर में पिछले 12 दिनों में कोई मृत्यु हुई है, ऐसे लोगो को यहाँ प्रवेश नही दिया जाता। मंदिर में समय-समय पर प्रसाद का वितरण भी किया जाता है।

नोट: भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर के बारे में सिर्फ जानकारी देने के उद्देश्य से ये लेख लिखा है। इस लेख में दिए बातोँ पर आप विश्वास करे या अंधविश्वास ये आपपर निर्भर करता है।

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