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प्रसिद्ध कवी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | Suryakant Tripathi Nirala

Suryakant Tripathi Nirala – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आधुनिक हिंदी साहित्य के सबसे प्रसिद्ध कवी थे। वे एक कवी, उपन्यासकार, निबंधकार और कहानीकार थे। साथ ही उन्होंने बहुत से स्केच भी बनाए है।

प्रसिद्ध कवी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला – Suryakant Tripathi Nirala

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, आधुनिक भारत के सबसे प्रसिद्ध कवी थे। उनका जन्म 21 फरवरी 1886 को बंगाल के मिदनापुर (वर्तमान उत्तरप्रदेश) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे कवी सम्मलेन में जाया करते थे और वहाँ जाकर उन्हें काफी प्रसिद्धि हासिल कर ली थी। बंगाली के विद्यार्थी रहते हुए, निराला को शुरू से ही संस्कृत भाषा में काफी रूचि थी। उस समय अपने ज्ञान और आध्यात्म की बदौलत उन्होंने बहुत सी भाषाओ जैसे बंगाली, अंग्रेजी, संस्कृत और हिंदी पर अपनी पकड़ जमा ली थी।

निराला का जीवन काफी थोडा और दुर्घटनाओ से भरा हुआ था। उनके पिता पंडित रामसहाय त्रिपाठी एक सरकारी नौकर थे और एक अत्याचारी इंसान थे। उनकी माता की मृत्यु तभी हो गयी थी जब वे छोटे थे। निराला ने बंगाली भाषा में प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। जबकि मेट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद, उन्होंने घर पर बैठकर ही संस्कृत और अंग्रेजी साहित्यों को पढना शुरू किया। इसके बाद अचानक वे लखनऊ स्थानांतरित हो गये और वहा वे उन्नाव जिले के गढ़ाकोला गाँव में रहने लगे, जो उनके पिता का पैतृक गाँव भी था। इसके बाद निराला वही पले-बढे और वहा रहते हुए उन्हें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, और रबिन्द्रनाथ टैगोर से काफी प्रेरणा मिली।

युवावस्था में ही विवाह करने के बाद निराला ने अपनी पत्नी मनोहरा देवी से हिंदी भाषा का ज्ञान लिया। इसके तुरंत बाद उन्होंने बंगाली की बजाए हिंदी में कविताए लिखना शुरू की। बचपन में देखे गये बुरे दिनों के बाद निराला को अब अपनी पत्नी के साथ कुछ अच्छा समय व्यतीत करने का समय मिला था। लेकिन उनके जीवन का यह आनंद भी ज्यादा समय तक नही टिक सका और जब वे 20 साल के थे तभी उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी और इसके कुछ समय बाद ही उनकी बेटी की भी मृत्यु हो गयी। इसके बाद निराला को आर्थिक मुश्किलों का भी सामना करना पड़ रहा था। इस काल में उन्होंने बहुत से प्रकाशकों के लिए काम भी किया, उन्होंने प्रूफ-रीडर और समन्वयक के रूप में काम किया था।

उनका ज्यादातर जीवन बोहेमियन परंपरा के अनुसार व्यतीत हुआ। जब वे अपने लेखो में अधिक या कम विद्रोही होने लगे तो लोग उन्हें जल्दी नही अपनाते थे। अपने द्वारा लिखे गये लेखो के जवाब में उन्हें सिर्फ और सिर्फ उपहास ही उपहास मिले। इन सभी चीजो ने उनके जीवन के अंतिम क्षणों में उन्हें पागलपन का शिकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने लेखो में सामाजिक शोषण और सामाजिक भेदभाव के मुद्दे को बड़े ही गंभीर रूप से व्यक्त किया है।

15 अक्टूबर 1961 को अलाहाबाद में निराला की मृत्यु हो गयी। हिंदी साहित्य की दुनिया को वे वैचारिक और सौन्दर्य विभाजन में बाँट कर गये थे। लेकिन आज हमें निराला जैसे बहुत कम कवी ही हिंदी साहित्य में दिखाई देते है, जिनका सभी सम्मान करते है।

वर्तमान में निराला उद्यान, एक भवन, निराला प्रेक्षाग्रह और डिग्री कॉलेज, महाप्राण निराला डिग्री कॉलेज का नाम उन्ही के नाम पर रखा गया है। अलाहाबाद के दारागंज मार्केट स्क्वायर में उनके जीवन क्रम को स्थापित किया गया है। यह वही जगह है जहाँ उन्होंने अपना ज्यादातर समय व्यतीत किया है। आज भी उनका परिवार अलाहाबाद के दारागंज में रहता है।

कार्य :

निराला ने महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पन्त और जयशंकर प्रसाद के साथ मिलकर छायावाद अभियान का बीड़ा उठाया था। निराला के परिमल और अनामिका को वास्तविक छायावाद हिंदी साहित्य का नाम दिया गया है। अपने जीवन काल में उन्हें ज्यादा पहचान नही मिली थी। उनकी कविताओ का प्रकार उस समय काफी क्रांतिकारी था, लेकिन उनके स्वभाव के चलते उनकी ज्यादातर कविताए प्रकाशित नही हो पाई। अपने छंदों से उन्होंने सामाजिक शोषण के खिलाफ आवाज भी उठाई थी। अपने कार्यो में उन्होंने वेदांत, राष्ट्रीयता, रहस्यवाद और प्रकृति के प्यार का खासा मिश्रण किया है।

उनकी रचनाओ का विषय हमेशा से ही ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक, सामाजिक और राजनीतिक रहा है। उन्होंने ही अपनी कविताओ में सौन्दर्य दृश्य, प्राकृतिक प्रेम और आज़ादी जैसी चीजो को शामिल किया है। इसके बाद छायावादी युग में उन्हों कविताओ के नए रूप को उजागर किया। सरोज स्मृति नाम की उनकी कविता काफी प्रसिद्ध है, जिसमे उन्होंने अपनी बेटी के प्रति उमड़े प्यार और भावनाओ का वर्णन बड़ी खूबसूरती से किया है।

आधुनिक हिंदी गद्यों में मुक्त छंदों के उपयोग करने का श्रेय भी निराला को ही जाता है।

निराला की बहुत सी कविताओ को बाद में बहुत से विद्वानों ने रूपांतरित भी किया है। रूपांतरित की गयी कविताओ में दी रिटर्न ऑफ़ सरस्वती : चार हिंदी कविताए, प्यार और युद्ध : छायावाद संकलन शामिल है।

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