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धरती

तोरा कियाक होयत छौ दुःख़
कियाक करैत छाs वियोग
ब्यर्थ मे, हमरा सँ दुर भेला पर
तु ते हमरा कहिओ
अपना नहि बुझलां
सब दिन हमरा सँ
दुरे भागल रहलाs 
तोरा ते सब दिन
डर लगैत छलौ
कादो सँ, माटि सँ
हमर सेवा ते दुर
हमर सेवक जोन हरवाह पर
सदिखन करैत रहलाs
अत्याचार, हमरे प्रतापे

हमरे प्रतापे
तोरा भेटैत छलौ सम्मान
 चिन्हैत छलौ परपट्टा मे
लोक कहैत छलौ "जमींदार"
चलैत छलौ रोब
गरीब-गुरुआ निरीह जनता पर

हम छटपटैत छलहुँ तोरा लग
खोजैत रहलहुँ अपन सेवक
साल दु साल नहि
हजारो साल सँ
जे हमरा अपन बुझय
जकरा हमर जरुरत होई

रचनाकार : दयाकान्त


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धरती

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