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एक ऐसा खास स्थान- जहाँ के लोगो को हनुमान जी देते है साक्षात् प्रत्यक्ष दर्शन

आज मैं अपनी ब्लॉग यात्रा में एक ऐसे स्थान के बारे में बताने जा रहा हूँ जहाँ के लोगो को हनुमान जी साक्षात् दर्शन देते है। है ना आश्चर्यजनक।। परंतु यह सत्य है। 

आप सब जानते है कि कलियुग में एकमात्र हनुमान जी है जो धरती पर विराजमान है और अगर सवाल ये उठता है कि अगर वो धरती पर है तो कहाँ।  क्योंकि मूर्ति में तो आप हर देवता के दर्शन करते है परंतु हनुमान जी केवल मूर्ति में ही नहीं हकीक़त में भी धरती में विराजमान है और ऐसा माना जाता है कि वो हिमालय के जंगलो में अभी भी वास करते है। 

हनुमान जी का प्रभु राम के प्रति अगाध प्रेम 

आपको आज जो बताने जा रहे है वह दिलचस्प ही नहीं बल्कि अविश्वसनीय भी है इसे पढने और जानने के बाद आपका भगवान् के प्रति श्रद्धा व विश्वास और बढ़ जाएंगे ….

आप सभी को पता होगा कि हनुमान जी अमर है और इन्हे यह वरदान श्री राम और माता सीता ने कलियुग मे धरती पर राम भक्तो के कल्याण के लिए दिया था। इस प्रकार बजरंग बलि जहाँ भी राम जी की कथा व कीर्तन होता है वहां पर अदृश्य  रूप में उपस्थित हो कर उनका आनंद लेते है। यह तो बात हुई इनके अदृश्यता की, लेकिन इनके साक्षात् स्वरूप त्रेतायुग के बाद जब द्वापरयुग आया उसमे भगवान् कृष्ण के काल के दौरान भी कई स्थान पर हनुमान जी के उपस्थित रहने का प्रसंग सुनने को मिला। 

हनुमानजी का कलयुग दर्शन 
कलियुग में सन 1300 में संत माधवाचार्य के आश्रम में हनुमान जी का आगमन हुआ था उसके बाद सन 1600 में वो तुलसीदास जी को रामायण का हिंदी अनुवाद लिखने के लिए कहने आये थे, इनका यह सिलसिला थमा नहीं फिर यह रामदास स्वामी, राघवेन्द्र स्वामी को पवनपुत्र हनुमान जी  ने साक्षात् दर्शन दिए है। 

तुलसीदास जी के समक्ष 

धरती पर जहाँ पर भी हनुमान जी ने विचरण किया था वहाँ पर उनके चरण चिन्ह आज भी देखे जा सकते है। हालांकि वर्तमान में उनका निवास स्थान गंधमादन पर्वत बताया जाता है जो की कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित है। 

गंधमादन पर्वत 

आज भी लोगो की मदद करने के लिए हनुमान जी आते है और अदृश्य रहते है, दृश्य सिर्फ एक ख़ास समुदाय के लोगो को है जो श्री लंका के जंगलो में रहते है l उनको हनुमान जी ने एक मन्त्र दिया था जिसके ज़रिये वो पवनपुत्र हनुमान का अगर आवाहन करेंगे तो उनके दर्शन उन्हें प्राप्त हो सकेंगे पर उस मन्त्र का कोई दुरूपयोग न करे इसके लिए हनुमान जी ने 2 शर्ते या कुछ नियम रखे जिसका सही अर्थ केवल इसी प्रजाति के लोग ही समझते है। पहला ये कि आपकी अंतरात्मा को ये ज्ञात हो कि उसका क्या सम्बन्ध है बजरंग बली से यानी कि वो एक भक्त का रिश्ता रखता है या शिष्य का या भाई बंधू सम्बन्ध का l केवल इस मन्त्र को आजमाने के लिए ही आप उच्चारण नहीं कर सकते और दूसरा नियम ये कि जिस स्थान पर आप इस मन्त्र का उचारण कर रहे होंगे वहाँ से लगभग 980 मीटर की दूरी पर केवल वही मनुष्य उपस्थित होंगे जिन्होंने पहली औपचारिकता पूरी करी हो l यानि की अगर वहाँ पर कोई मनुष्य उपस्थित भी हो तो सिर्फ वो जिसकी अंतरात्मा को बजरंग बली से क्या सम्बन्ध है पता हो। 

श्री लंका में एक जगह है पिदुरुथालागला जहाँ के पिदुरु पर्वत के जंगलो में एक विशेष प्रकार की जनजाति के लोग रहते है जिनके पूर्वजो को हनुमान जी ने ये मन्त्र वरदान में दिया था। भगवान् राम के जाने के बाद हनुमान जी जंगलो में विचरण करते रहे और ऐसे ही जंगलो में वास करते रहे थे। उस समय हनुमान जी लंका की और चले गये थे जहाँ रावण का भाई विभीषण राज करता था, उस समय उन्होंने जंगलो में ही रहना शुरू कर दिया था और वहां कुछ समुदाय के लोगो ने उनकी बहुत सेवा की, उनकी सेवा से यह प्रसन्न होकर पवनपुत्र ने जाते जाते कहा ” मै तुम्हारी सेवा से काफी प्रसन्न हुआ इसके लिए मै तुम्हे एक मन्त्र वरदान के रूप में देता हूँ “ वो मन्त्र है "कालतंतु कारेचरन्ति एनर मरिष्णु , निर्मुक्तेर कालेत्वम अमरिष्णु".  

जब भी तुम्हे मेरे दर्शन प्राप्त करना हो इस मन्त्र का जाप करना और मै एक प्रकाश की तीर्व्गति के समान तुम तक पहुँच जाऊंगा लेकिन मन्त्र प्राप्त करने के बाद उस समुदाय के मुखिया ने एक अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि “प्रभु हम तो इस मन्त्र को सुरक्षित रखेंगे जबकि इसे किसी ने प्राप्त कर के दुरूपयोग करना चाहा तब क्या होगा ” 

हनुमान जी ने उत्तर दिया और मुखिया से कहा कि “इसे मन्त्र को जाप करने से पहले उस व्यक्ति को मेरे से सम्बन्ध पता होना अनिवार्य है “ अर्थात अगर कोई भी इस मन्त्र को जपता है तो वो ये दो औपचारिकताये पूरी करेगा। परंतु फिर भी मुखिया की चिंता समाप्त नहीं हुई और मुखिया ने कहा "प्रभु आप ने हमे आत्मज्ञान से परिपूर्ण किया किन्तु हमारे आने वाली पीढी का क्या, जबकि हम तो जान गये कि हम कौन है हमारा पूर्व जन्म क्या था हम किस लिए जन्मे है और मर कर कहा जायेंगे जबकि आने वाली पीढ़ी तो ये नहीं जानती होगी कि उसका आपसे क्या सम्बन्ध है तो क्या उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी" . 

इस पर हनुमान जी ने कहा “मै वचन देता हूँ कि मै हर 41 साल बाद तुम्हारे समुदाय के पास जरूर आऊंगा और उन्हें आत्मज्ञान दूंगा।  वक़्त के अंत तक केवल तुम्हारी प्रजाति होगी जो इस मन्त्र का जाप करने में सक्षम होगी और मेरे दर्शन प्राप्त कर सकेगी ” . 

आपको बता दे आज भी ये लोग पिदुरु पर्वत के जंगलो में वास करते है और चर्चा का विषय अब इसलिए बना कि कुछ अजीबो गरीब कार्य करते देखे गए है ये लोग। ये वो लोग है जिन्हे आज की आधुनिक दुनिया से खुद का कोई वास्ता नहीं है।  जब इस बात का पता लगया गया की वो क्या अजीबो गरीब कार्य है जिसे उन्हें करते देखा गया तो उन्होंने बताया कि वो है “चरण पूजा” जी ये वो तब करते है जब हनुमान जी साक्षात् उनके सामने प्रगट होते है।  अब आप इससे अंदाज़ा लगाये कि जिन्होंने ये काम उन्हें करते देखा तो वो हनुमान जी को नहीं देख पाए और उन्हें लगा की ये आखिर किसकी पूजा कर रहे है।  इसका मतलब आप या हम जैसे आम प्राणियों को तो उनके दर्शन इतने आसानी से कभी प्राप्त नहीं होंगे। 

आपको एक बात और बता दे कि 27 मई 2014 ये वो दिन था जब उन लोगो ने 41 साल बाद हनुमान जी के पुनः दर्शन प्राप्त किये थे और उनसे आत्मज्ञान प्राप्त किया था। अब पुनः ये वक़्त 2055 में आयेगा जब वो दोबारा इस समुदाय के लोगो को ज्ञान देने आयेंगे।  इसका अर्थ ये भी है कि अगर इनमे से किसी को भी हनुमान जी के दर्शन प्राप्त करने होते है तो वो इस मन्त्र का जाप करके उन्हें बुलाता है और बात सबसे दिलचस्प ये कि इस समुदाय का मुखिया एक किताब लिखता है जिसमे वो हनुमान जी के आगमन से लेकर उनके शब्द, उनकी क्रियाँए, उनके उपदेश सब कुछ उसमे लिखता है। 

श्री हनुमान जी 

ये एक बहुत ही लम्बी चौड़ी किताब बन चुकी है जिस पर अब सेतु एशिया नामक धार्मिक संस्थान इस पर शोध कर रहा है और अब तक वो इस किताब में से केवल 3 अध्याय को ही समझ पाए है जिसमे लिखा गया है कि जब हनुमान जी यहाँ आते है तो क्या क्या करते है यानि इस किताब में वो शब्द है जो इस समुदाय का मुखिया लिखता है। 

ऐसे करूणा के सागर राम भक्त हनुमान जी की जय। .... 





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