New Delhi: राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के अध्यक्ष मोहन भागवत द्वारा भाषण दिए जाने के दो दिन बाद राम मंदिर और कश्मीर मुद्दा दोबारा गर्मा गया है।
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इस मामले में भाजपा की सहयोगी पार्टी और महाराष्ट्र की शिवसेना ने अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए राजनेताओं के सामने कई सवाल खडे किए। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को निशाने पर लेते हुए शिवसेना ने कहा कि “वे लोग बड़े ही आत्मविश्वास के साथ भारत पर भारतीय जनता पार्टी के 50 साल तक के शासन की बात करते हैं, लेकिन हमेशा अनुच्छेद 370 पर टिप्पणी करने से बचते हैं, जो जम्मू-कश्मीर और राम मंदिर को विशेष दर्ज प्रदान करती है।”
भाजपा के राजनीतिक सहयोगी शिवसेना ने अपने अखबार सामना के संपादकीय में आरएसएस चीफ मोहन भागवत की टिप्पणियों और राम मंदिर पर उनके बयानों को गंभीरता से लेने का आग्रह किया है। उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली पार्टी ने कहा कि “राम मंदिर निर्माण का मुद्दा सिर्फ चुनावी वादा बनकर रह गया है, जिसके कारण हिंदुत्व भी मजाक बनकर रह जाएगा।”
शिवसेना ने सामना के संपादकीय में कहा कि “राम मंदिर का मुद्दा उठाकर आरएसएस ने अपनी स्थिर प्रतिबद्धता जाहिर की है। लेकिन राजनेताओं के अंदर वचनबद्धता भी बाकी मुद्दों में शामिल है।” शिवसेना ने पूछा कि “क्या बढ़ते पैट्रोल-डीजल की कीमत और सैनिकों का कटा हुआ सिर ही भारत का भविष्य है।”
शिवसेना ने अपने संपादकीय में यह भी पूछा कि “आखिर क्यों भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के साथ पीड़ीपी नेतृत्व में सरकार बनाई, जो अंत तक अनुच्छेद 370 के खात्मे का विरोध करती रही। महबूबी मुफ्ती ने यहां तक कहा कि अगर अनुच्छेद तोड़ा गया तो दंगे-फसाद होंगे। तो क्या भाजपा ने सत्ता की चाहत में पीडीपी के साथ गठबंधन किया था।”
अपने संपादकीय में शिवसेना ने आगे कहा कि “अगर कोई भी व्यक्ति 50 साल तक भारत की सत्ता में रहना चाहता है तो अधिकारों की रक्षा के लिए आरएसएस चीफ को राजनेता बन जाना चाहिए। लेकिन सच बोलने के लिए कोई भी तो तैयार नहीं है।” शिवसेना ने मोहन भागवत के उस बयान की तरफ इशारा किया, जिसमें उन्होंने गौ सरंक्षण में मॉब लिंचिंग का उल्लेख किया था।
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