सूर्य उपासना के प्रमुख पर्व के रूप में छठ का पर्व बहुत बड़े पर्व के रूप में उत्तर भारत के बिहार, झारखण्ड , नेपाल की तराई और और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता हैं. सूर्य उपासना सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित हैं. सूर्य उपासना का प्रमुख उद्देश्य एक स्वास्थ्य और बीमारी से रहित जीवन की कामना करने से होता हैं. छठ के व्रत को बहुत कठिन व्रत माना गया हैं. कार्तिक शुक्ल पक्ष की छठी (chhath puja) को मनाया जाने के कारण इस व्रत को छठी के व्रत के नाम से जाना गया हैं. चार दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार को हम चार भागो में विभाजित कर सकते हैं.
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पहला दिन – नहाय खाय
दूसरा दिन- खरना
तीसरा दिन- चेती छठ
चतुर्थ दिन – उगते हुए सूर्य को अर्घ्य
तीसरा दिन चेती छठ जिसे कहते हैं सबसे महत्वपूर्ण दिन होता हैं. इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता हैं, इसी दिन ठेकुआ , चावल के लड्डू आदि प्रसाद के रूप में बनाये जाते हैं.
चैती छठ कब है 2018 में
चेती छठ चैत्र मास की छठी तिथि को मनाये जाने के कारण इसे चेती छठ कहते हैं, इस त्यौहार में भी चार दिन कार्तिक मास की छठ की तरह महत्वपूर्ण होते हैं, नहाय खाय ,खरना , संध्या घाट , भोरवा घाट. चेती छठ मार्च अप्रैल के महीने में मनाया जाता हैं.
Significance of Chhath Pooja
लोक जीवन की मिठास से पूर्ण छठ का पर्व (chhath puja) पवित्र, सादगी से पूर्ण पर्व हैं. इस पर्व की महत्ता इसकी पूजा में निहित हैं, क्यूकि ये पर्व किसी वेद पुराण का हिस्सा न होकर ग्रामीण और किसान जीवन पर केंद्रित हैं.इस पर्व की सबसे प्रमुख विशेषता ये हैं की इसमें जन की भागीदारी सबसे महत्वपूर्ण हैं इस पर्व के लिए किसी पुरोहित या पंडित की आवश्यकता नहीं होती ,न ही कोई विशेष खर्च के लिए धन की.वर्तमान समय में छठ पूजा के लिए सरकार की तरफ से भी विशेष प्रबंधन किये जाते हैं. जैसे छठ पूजा (chhath puja) के लिए नदी के किनारे सूर्य को अर्घ देने के लिए घाट की व्यवस्था, आदि सरकार द्वारा की जाती हैं. छठ पूजा के दौरान भीड़ में कोई असावधानी न हो इसके लिए विशेष प्रबंधन राज्य सरकार द्वारा किया जाता हैं.
How is Chhath Puja Celebrated:
छठ पूजा को हम चार भागो में विभाजित कर सकते हैं.
नहाय खाय -छठ का पहला दिवस सम्पूर्ण घर की साफ़ सफाई के साथ शुरू होता हैं. इस दौरान घर के सभी सदस्यों को पवित्रता का पूरा ध्यान रखना होता हैं. व्रती नदी किनारे जाकर पवित्र स्नान करते हैं. और वहा से पात्र में जल भरकर घर में लाते हैं.इस दिन वे मिटटी के बर्तनो में खाना बनाते हैं , और दिन में एक समय कद्दू भात खाते हैं. इस. खाना इस दिन चूल्हे में बनाया जाता हैं, और खाना बनाने के लिए चूल्हे में आम की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता हैं.
खरना -इस दिन की शुरुवात में व्रती पूरा दिन उपवास रखता हैं, और शाम को सूर्यास्त के बाद उपवास तोड़ते हैं, इस दिन पूजा में खीर पूरी और फलो का भोग लगता हैं, और इसके बाद व्रती 36 घंटो के लिए निर्जल उपवास रखता हैं.
तीसरा दिन छठी मैया का दिन होता हैं, इस दिन व्रती संध्याकाल के दौरान नदी किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं, इस दिन व्रती हल्दी के रंग की साड़ी पहनते हैं. इस दिन वे पांच गन्ने ( पृथ्वी, जल , वायु, आकाश के प्रतीक के रूप में मानकर) दिए के चारो और लगाकर रखते हैं, इसे कोसी की रस्म कहा जाता हैं.
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उषा अर्घ्य – छठ पर्व का चतुर्थ दिन इस दिन व्रती और परिवार के सभी सदस्य जाकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं, इसके बाद व्रती अपना व्रत तोड़कर छठ पूजा का प्रसाद ग्रहण करता हैं.
Chhath Puja katha in Hindi
सूर्य को समर्पित छठ का महापर्व शुद्धता, स्वच्छता का पर्व हैं , छठ पर्व की शुरुवात रामायण काल से मानी जाती रही हैं , इस व्रत को रामायण काल में सीता माँ नेकिया और द्वापर काल में द्रौपदी ने किया था, छठ पूजा से सम्बंधित जो कहानी हैं उसमे एक प्रियव्रत नाम का राजा था,उनकी पत्नी मालिनी थी, लेकिन उन की कोई संतान नहीं थी, ऋषि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया , परिणाम स्वरुप रानी गर्भवती हुयी , परन्तु रानी ने एक मरे हुए पुत्र की जन्म दिया , राजा बहुत दुखी हुआ , और उन्होंने आत्महत्या करने की सोची .
राजा के सम्मुख देवी प्रकट हुयी देवी ने राजा को अपना परिचय दिया और कहा की में छठी देवी हूँ ,मैं सभी के सच्चे भाव को सुनकर उनकी इच्छाओ को पूरा करती हूँ , अगर तुम सच्चे मन से मेरी प्रार्थना करोगे ,तो मैं तुम्हारे सभी मनोरथो को पूरा करुँगी. देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया, इस कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को राजा ने अपनी पत्नी के साथ छठ का पर्व बनाया. उसके बाद से ही छठी का पर्व मनाया जाने लगा
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सूर्य पूजा का महत्व देखा जाये तो रामायण काल से माना जाता हैं ,राम ने लंका पर विजय के उपरांत सूर्य पूजा की थी. महारानी सीता ने छठी का व्रत रखा था. अंगराज कर्ण सूर्यदेव और महारानी कुंती के पुत्र थे , वे भी सूर्यदेव की पूजा करते थे, और उसके पश्च्यात दान का कार्य किया करते थे.
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