गुहिलोत वंश का इतिहास |History of Guhilot Vansh:
भगवान राम के असली वंशधर
Guhilot / Gahlot / गुहिलोत / गहलोत : इस वंश के स्वामी और छत्तीस कुल के भूषण, सूर्यवंशी महाराणा चित्तौड़ाधीश हैं, यह रामचन्द्र जी के असली वंशधर माने जाते हैं, सूर्यवंशी अंतिम राजा सुमित्र से इनका सम्बन्ध है, इनके कुल का विस्तार से वर्णन मेवाड़ के इतिहास राजस्थान में लिखा है, यहाँ हम उनके नाम और गौत्र के विषय में कुछ लिखेंगे, जो कनकसेन के समय से प्राप्त हुए हैं, और उन देशों के अधीन हैं, जिस राजा ने दूसरी शताब्दी में अपने असली राज्य कौशलदेश को छोड़कर सौराष्ट्र में सूर्यवंश को स्थापित किया था |
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गुहिलोत वंश के विविध नामकरण
विराट के स्थान पर जो कि पाण्डवों के वनवास समय में उनके रहने का प्रसिद्ध स्थान था, इक्ष्वाकु के वंशधर ने अपना वंश स्थापित किया, और उसके वंशधर विजय ने थोड़ी सी पीढ़ियों के उपरान्त विजयपुर (विराटगढ़) स्थापित किया, ये ही वल्लभीपुर के राजा कहलाये, और एक सहस्त्र वर्ष तक वल्लभी / बालकराय उपाधि को सौराष्ट्र के राजवंशों ने क्रमशः धारण किया | गजनी उनकी दूसरी राजधानी थी, जहाँ से अंतिम राजा शिलादित्य और उनका कुटुम्ब छठी शताब्दी में पार्थियनों द्वारा बाहर किया गया, उनके ग्रहादित्य नामक पुत्र ने ईडर का छोटा सा राज्य प्राप्त किया, और इस परिवर्तन से उसी के नाम पर उस वंश का नाम पड़ गया और राम का वंश गहिलोत कहलाने लगा, पीछे ईडर के जंगलों से आहड वा आनन्दपुर जा बसने के कारण यह नाम बदलकर अहाडिया हो गया, इस नाम से यह वंश बारहवीं शताब्दी तक प्रसिद्ध रहा, जब ज्येष्ठ भ्राता राहप ने बाहुबल से मोरी राजा से छीनी, चितौड़ की गद्दी का अपना स्वत्व त्यागकर डूंगरपुर में अपना राज्य स्थापित किया, जो आज भी उनके वंश वालों के अधीन है, और अहाडिया उपाधि को आज तक वे लोग धारण करते हैं, उनके छोटे भ्राता महाप ने अपनी सिसोद स्थापित की, जिसके कारण इस वंश का तीसरा नाम सिसोदिया हो गया पर मुख्य गुहिलोत लिखा जाता है, यह चौबीस शाखाओं में विभक्त है जिनमें यह थोड़ी शेष हैं |
गुहिलोत वंश की शाखायें :
1. अहाडिया डूंगरपुर में
2. मांगलिया मरुभूमि में
3. सीसोदिया मेवाड़ में
4. पीपाड़ मारवाड़ में
5. कैलाया
6. गहोर
7. धोरणिया
8. गोधा
9. मजरोपा
10. मीमला
11. कंकोट
12. कोटेचा
13. सोरा
14. ऊहड़
15. ऊसेवा
16. निरूप
17. नाछोड़या
18. नाधोता
19. भोजकरा
20. कुचेरा
21. दसोद
22. भटेवरा
23. पाहा
24. पूरोत
गहलोत वंश की कुलदेवी बाणेश्वरी माता –
राजस्थान के इतिहास में मेवाड़ का गुहिल राजवंश अपने शौर्य पराक्रम कर्तव्यनिष्ठा, और धर्म पर अटल रहने वाले 36 राजवंशों में से एक है । गुहिल के वंश क्रम में भोज, महेंद्रनाग, शीलादित्य, अपराजित महेंद्र द्वितीय एवं कालाभोज हुआ । कालाभोज बापा रावल के नाम से प्रसिद्ध हुआ । वह माँ बायण का अनन्य भक्त था ।
बायणमाता गुहिल राजवंश ही नहीं इस राजवंश से निकली दूसरी शाखा सिसोदियां और उनकी उपशाखाओं की भी कुलदेवी रही है । दलपति विजय कृत खुम्माण रसों में माँ बायण की बापा रावल पर विशेष कृपा का उल्लेख मिलता है। विस्तार से पढ़ें >>
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