Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

वरलक्ष्मी व्रत कथा

वरलक्ष्मी व्रत कथा devotional varalakshmi history  

पौराणिक कथा अनुसार एक बार मगध राज्य में कुण्डी नामक एक नगर था। कथानुसार कुण्डी नगर का निर्माण स्वर्ग से हुआ था। इस नगर में एक ब्राह्मणी नारी चारुमति अपने परिवार के साथ रहती थी। चारुमति कर्त्यव्यनिष्ठ नारी थी जो अपने सास, ससुर एवम पति की सेवा करके माँ लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना कर एक आदर्श नारी का जीवन व्यतीत करती थी।   

एक रात्रि में चारुमति को माँ लक्ष्मी स्वप्न में आकर बोली, चारुमति हर शुक्रवार को मेरे निमित्त मात्र वरलक्ष्मी व्रत को किया करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हे मनोवांछित फल प्राप्त होगा। 

अगले सुबह चारुमति ने माँ लक्ष्मी द्वारा बताये गए वर लक्ष्मी व्रत को समाज के अन्य नारियों के साथ विधिवत किया। पूजन के सम्पन्न होने पर सभी नारियां कलश की परिक्रमा करने लगी, परिक्रमा करते समय समस्त नारियों के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सज गए।   

मासिक दुर्गाष्टमी की कथा एवम इतिहास

उनके घर भी स्वर्ण के बन गए तथा उनके यहाँ घोड़े, हाथी, गाय आदि पशु भी आ गए। सभी नारियों ने चारुमति की प्रशंसा करने लगे। क्योंकि चारुमति ने ही उन सबको इस व्रत विधि के बारे में बताई थी। कालांतर में यह कथा भगवान शिव जी ने माता पार्वती को कहा था। इस व्रत को सुनने मात्र से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। 

वरलक्ष्मी व्रत महत्व devotional varalakshmi history  

ये व्रत श्रावण माह की पूर्णिमा से एक सप्ताह पूर्व शुक्रवार को मनाई जाती है। वरलक्ष्मी माँ को माँ लक्ष्मी का दूसरा अवतार माना गया है। जिसे धन की देवी कहा जाता है। नारीत्व का व्रत होने के कारण यह व्रत सुहागन औरतें अति उत्साह से मनाती है। इस व्रत के करने से व्रती को सुख, सम्पति, वैभव की प्राप्ति होती है। 

वरलक्ष्मी व्रत : पूजा की विधि devotional varalakshmi history  

व्रती को इस दिन प्रातः काल जगना चाहिए, घर की साफ-सफाई कर स्नान-ध्यान से निवृत होकर पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लेना चाहिए। तत्पश्चात व्रत का संकल्प करना चाहिए। देवी माँ लक्ष्मी की प्रतिमूर्ति को पूर्व दिशा में अवस्थित कर रखें। पूजा स्थल पर थोड़ा सा तन्दुल फैलाए। एक कलश में जल भरकर उस तंदुल पर रखें। तत्पश्चात कलश के चारों तरफ चन्दन लगाएं। 

कलश के नादर पान, सुपारी, सिक्का, आम के पत्ते आदि डालें। तदोपरांत एक नारियल पर चन्दन, हल्दी, कुमकुम लगाकर उस कलश पर रखें। एक थाली में लाल वस्त्र, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा, दीप, धुप आदि से माँ लक्ष्मी की पूजा करना चाहिए। इस दिन निराहार रहें तथा रात्रि काल में आरती-अर्चना के पश्चात फलाहार कर सकती है। इस प्रकार वर लक्ष्मी व्रत कथा सम्पन्न हुई। प्रेम से बोलिए माँ लक्ष्मी की जय।    

ASTRO SHALIINI
9910057645



This post first appeared on Reiki, please read the originial post: here

Share the post

वरलक्ष्मी व्रत कथा

×

Subscribe to Reiki

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×