Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

राजनीतिक शुचिता...को जरुरत स्वच्छता अभियान की.

हाय जुबान का ये फिसल जाना...

हमारे राजनेताओं को पता नहीं जब-तब कौन सा वायरस काट लेता है की उनकी जुबान आयें-बाएं बकना शुरू sorry...! ऐसे मौसम का असर मुझ पर भी हो गया और मेरी जुबान को भी उस वायरस ने काट लिया. खैर... मै तो क्षमा मांग चुकीं  हूँ, हाँ...! तो बात हो रही थी नेताओं की कि उनकी जुबान प्रायः फिसल कर जाया करती है जिसकी गति  पर कोई speed breaker भी अपना असर नहीं दिखा सकता. अब गुजरात का चुनाव मुंह बाएं खड़ा है और ऐसे समय पर यदि किसी नेता की जुबान नहीं फिसली तो फिर भला कब फिसलेगी. राजनीति के गलियारों में भी आजकल ऎसी ही एक फिसली जुबान के चर्चे हर जुबान पर है. शायद अभी इस जुबान को फिसले 24 घंटे भी नहीं हुए हैं कि हर न्यूज़ चैनल पर इस फिसली जुबान के चर्चे सुने और देखें जा रहे हैं. अब आप ही बताएं इन जनाब ने इतने दिन से सुस्त पड़े न्यूज़ चनलों को आखिरकार सोते से जगा ही दिया और अपने पीछे लगा लिया. शाम होते न होते कई चनलों ने तो इस बात की debate ही छेड़ दी की उनकी जुबान वाकई फिसली थी या थोड़ा झटका खा गई. एक चैनल पर इस debate पर भिड़े भिन्न पार्टी के लोगों के प्रतिनिधियों की जुबान तो इतनी फिसल रही थी की वे तो मूल मुद्दा ही भूल गए थे गनीमत ये थी कि वे टी.वी. स्टूडियो में थे अन्यथा वे तो एक दुसरे पर कुर्सी और न जाने क्या-क्या अब तक फेंक चुके होते.
चित्र- सौजन्य गूगल.कॉम


  खैर हम भी मूल मुद्दे पर आते हैं. इन नेता जी की फिसली जुबान ने फिर से कई सैकड़ा भूली-बिसरी फिसली हुई जुबानों की यादें ताजा कर दी. एक समय था जब किसी नेता की जुबान फिसलती थी तो उसका खामियाजा उसे अपने पद से इस्तीफा देकर चुकाना पड़ता था पर... धीरे-धीरे नेताओं की इस जमात को ये भारी पड़ने वाली भूल की कीमत चुकाने के लिए लिखित माफीनामा देकर काम चलाने की आदत डाल ली और अपनी कुर्सी बचाने का इंतजाम कर लिया. और फिर.... धीरे-धीरे उनकी जुबान तो फिसलने की आदि होती चली गई और माफ़ीनामा वे कब तक देते बेचारे.. इसलिए उन्होंने अपनी फिसलती जुबान का ठीकरा मीडिया के सर फोड़ना शुरू कर दिया. अब आप ही बताएं यदि नेता जब-तब आयें-बाएं बके और वो गलती मीडिया की बताएं कि उनके कहे को मीडिया ने गलत तरीके से पेश किया तो इसमें वाकई उनकी गलती तो नहीं है. खैर राजीनीति में तो अब ये ये रोजमर्रा की बात हो चुकी है.
अब गुजरे कल में जिन भी नेता साहेब की जुबान फिसली और उन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा की भी प्रवाह नहीं की और अपनी जुबान को उनके खिलाफ फिसल जाने दिया. ये तो अंधेर है और उन्होंने और अंधेर तब का दिया जब उन्होंने इसका ठीकरा अनुवाद के सर फोड़ दिया.धन्य है नेता जी... थोड़े भी शर्मिंदा नहीं हैं. कम से कम प्रधानमंत्री के पद की गरिमा ही रख लेते. पर इसका भी इलाज हो सकता है. अब ये देश के प्रधानमंत्री को तय करना चाहिए कि उनके द्वारा चलिए गए स्वच्छता अभियान का प्रयोग वे नेताओं के लिए भी करेन. ताकि राजनितिक शुचिता का मतलब ये नेता गण समझ सकें.

जय हिंद.................................

Share the post

राजनीतिक शुचिता...को जरुरत स्वच्छता अभियान की.

×

Subscribe to ये भारत है मेरे दोस्त ................

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×