बुझा न पाया जो तेरी जाग्रत जिज्ञासा की प्यास
नहीं मिला तुझे जहाँ पंख फ़ैलाने को भरपूर आकाश
उस बसेरे को छोड़, ऐ परिंदे ,तू नया आशियाना ढूंढ ले
उपेक्षाओं की धुंध जहाँ तेरी प्रेरणा ले उड़े
अंतर्मन को व्याधित करते हर पल जहाँ शब्दों के बाण मिले
बाह्याचार के बंधन तोड़
सच्ची आत्मीयता की खोज में , ऐ परिंदे तू नया मक़ाम ढूंढ ले
अत्यंत हो चाहे तेरा परिभाषित गंतव्य
बाधाएँ मार्ग पर हो अनंत
बहेलिया बैठा है , निहार रहा तुझे इसी आशा में
फंस जाये तू उकता कर फंदे में
इन अप्राकृतिक सरंचनाओं को छका
सुरक्षित,भयमुक्त वातावरण से पटा , ऐ परिंदे तू नया ठिकाना ढूंढ ले