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अन्धकार ही अन्धकार है

बहुत दिनों से सोचा , की कुछ ऐसा लिखू,
जिस माट्टी में जनम लिया, शोभा उसकी बड़ा सकू
बुलंद होंसलो से में, आवाज को उठा सकू ,
लेकिन ये सोचा न था , बेठे है द्रोही इसकी गोद में,
दबे है खुद , दबायेंगे तुझे ,
भ्रस्त्ताचार, लोभ, माया ये |


जिस देश में गुरु इश्वर था ,
मानवता थी, प्यार था ,
आज चारो तरफ अन्धकार ही अन्धकार है
राम रहीम के देश में,
आज अन्याय है, दुराचार है |


संस्कृति की रक्षा के नाम पर,
कट्टरपंथियों का बोल बाला है,
बेक़सूर पिस्ता जा रहा,
दोषी हो रहा बलवान है |
हे राम , तेरे देश में आज अन्धकार ही अन्धकार है


राम राज के नाम पर, मांगे है ये वोट सभी ,
रामराज का तो पता नही , राम रहीम को लडाते है यही,
मंदिर मस्जिद की लडाई में,
आज पिस रहा निर्दोष है ,
आज चारो तरफ अशांति है,
मन में सबके द्वेष है |


तिरंगे की चमक आज, फीकी है पड़ चली,
रोजी रोटी के नाम पर , आंधी ये कैसी चल पड़ी,
उड़ा न ले जाये आशियाना कही , आंधी ये खुन्कार है,
हे राम तेरे देश में, आज अन्धकार ही अन्धकार है |


डिम्पल शर्मा

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अन्धकार ही अन्धकार है

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