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नरेन्‍द्र मोदी - पूंजीवादी राष्‍ट्रवाद की मण्‍डी में अवतरित नया 'मसीहा'

पूंजीवादी व्‍यवस्‍था की ख़ासियत है कि वह हर चीज़ को माल में और लोगों को निष्क्रिय उपभोक्‍ता में तब्‍दील करने की कोशिश करती है। इसका जीता जागता उदाहरण हम भारत में देख ही रहे हैं कि पूंजीवाद जैसे जैसे अपने पैर पसार रहा है, यहां की हर चीज़ - रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, जल, जंगल, जमीन, पहाड़, नदियां, रिश्‍ते, नाते, आंसू, ग़म, खुशियां, त्‍योहार, धर्म, नैतिकता आदि मण्‍डी में बिकने वाले माल में तब्‍दील हो गये हैं। लेकिन पूंजीवाद मुनाफ़ाखोरी की जो अंधी हवस पैदा करता है उसका परिणाम अपरिहार्य रूप से आर्थिक, सामाजिक और नैतिक संकट के रूप में सामने आता है। समाज को भीषण संकट की गर्त में धकेलने के बावजूद पूंजीपतियों की मुनाफ़े की हवस शान्‍त नहीं होती, उल्‍टे वे इस संकटकालीन परिस्थिति का भी लाभ अपना मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए करते हैं। ऐसी संकटकालीन परिस्थिति में उनके सामने सबसे कारगर हथियार होता है लोगों की देशभक्ति की भावना। इक्‍कीसवीं सदी में मीडिया ने पूंजीवाद के प्रायोजित देशभक्ति की भावना फैलाने के काम को और आसान कर दिया हैा यह अनायास नहीं है कि जैसे जैसे भारतीय अर्थव्‍यवस्था संकट के दलदल में धंसती जा रही है और सामाजिक और नैतिक पतन अपनी पराकाष्‍ठा पार करता जा रहा है, वैसे वैसे प्रायोजित देशभक्‍ति की लहर भी हिलोरे मार रही है। देशभक्ति की भावना को मण्‍डी में बिकाऊ माल बनाने के बाद लोगों को ऐसे राजनीतिक विकल्‍प भी परोसे जाते हैं जो वास्‍तव में कोई विकल्‍प हैं ही नहीं बल्कि वे इसी लुटेरी व्‍यवस्‍‍था को और मज़बूती से क़ायम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत में धर्मपरायण लोग अपने दुखों और तकलीफ़ों का कारण ढूंढकर उनका समाधान खुद करने की बजाय अपना दुख हरने के लिए किसी मसीहा का इन्‍तज़ार करते हैं। मसीहा के इन्‍तज़ार की यह प्रवृत्ति पूंजीवाद के लिए एक संजीवनी का काम कर रही है। पिछले कुछ वर्षों से देशवासियों को मसीहाओं के भांति- भांति के ब्राण्‍ड पेश किये जा रहे है। कुछ समय तक अण्‍णा टोपी का ब्राण्‍ड परोसा गया जिससे लोगों में थोड़ी उम्‍मीद जगी कि शायद अण्‍णा ही वह मसीहा है जिसका उन्‍हें बेसब्री से इन्‍तज़ार था। लेकिन यह ब्राण्‍ड ज्‍़यादा दिनों तक नहीं चला, सो राष्‍ट्रवाद की मण्‍डी में आम आदमी की टोपी के रूप में एक नया ब्राण्‍ड परोसकर आम आदमी को एक दूसरी टोपी पहनाने की कोशिश की गयी। कुछ लोगों को फिर लगा कि शायद अब तो उनके मसीहा का इन्‍तज़ार ख़त्‍म हो गया। लेकिन वह ब्राण्‍ड भी टांय टांय फुस्‍स साबित हो गया और एक बार फिर लोग अपने आप को ठगा महसूस करने लगे।

इन दिनों नरेन्‍द्र मोदी के रूप में मसीहा का एक नया ब्राण्‍ड मार्केट में अवतरित हुआ है। इस ब्राण्‍ड को लांच करने के लिए इसके प्रायोजकों को न सिर्फ मोदी की दाढ़ी, चश्‍में, कपड़ों और पूरे गेटअप पर काफी ख़र्च करना पड़ा बल्कि उसके दामन पर लगे हज़ारों मासूमों के खून के धब्‍बों को भी डिटर्जेंट से रगड़-रगड़ कर साफ करने में भी काफी मशक्‍कत करनी पड़ी। लेकिन पूंजीवाद में अगर आपके पास अपने ब्राण्‍ड की मार्केटिंग के लिए ज़रूरी पूंजी है तो आपको आप किसी भी ब्राण्‍ड को लोकप्रिय कर सकते हैं। इस नये मसीहा के ब्राण्‍ड को भी लांच करने के लिए इसके प्रायोजकों के पास पैसे की तो कोई कमी थी नहीं, इसलिए उन्‍होंने स्‍वदेशी की अपनी रट को दरकिनार कर अमेरिका की पी आर एजेंसी को भी हायर करने में भी कोई परहेज़ नहीं किया। इन सब का परिणाम यह है कि मसीहा का इंतज़ार कर रहे निष्क्रिय मध्‍यवर्ग में एक नई उम्‍मीद का संचार हो गया है। अब उनको यकीन हो चला है कि बस यही वह मसीहा है जिसके प्रधानमंत्री बनते ही इस देश में भ्रष्‍टाचार का नामोनिशान नहीं रहेगा, रूपये का मूल्‍य बढ़ जायेगा, महंगाई स्‍वाहा हो जायेगी, आतंकवाद का ख़ात्‍मा हो जायेगा, पाकिस्‍तान, चीन और बंगलादेश भारत के आगे नतमस्‍तक हो जायेंगे और उनकी तमाम निजी समस्‍यायें छूमंतर हो जायेंगी। इसके लिए उन्‍हें एक आसान नुस्‍खा भी सुझाया जा रहा है कि उन्‍हें बस रोजाना सुबह शाम नमो-नमो का जाप करना है। इसलिए इसमें यह आश्‍चर्य नहीं है कि मध्‍यवर्ग के घर और दफ्तर से लेकर फेसबुक और टि्वटर तक नमो-नमो के कानफाड़ू मंत्रोच्‍चारण के शोरगुल से गूंज रहे हैं। हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा, शिव चालीसा, सत्‍यनारायण कथा और ओम-जय-जगदीश की आरती से तो बात बनी नहीं, देखना यह है कि इस नये मंत्र से इस वर्ग का कितना उद्धार होता है।


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