Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

धन्यवाद् प्रेमचंद ! :-)

मुंशी प्रेमचंद से मेरा साक्षात्कार बचपन में ही हुआ था। शायद, 'हीरा-मोती' की कहानी से। तब से, प्रेमचंद मेरे प्रिय बन गए। उनकी अनेकों कहानिया, उपन्यास मैंने पढ़ डाले। उनके लिखने में कोई ऐसा जादू था, जितना पढता, उतना ही ह्रदय बाग बाग हो जाता। उनकी जीविका भी पढ़ी। कैसे एक साहित्य के मार्गदर्शक, एक महान लेखक का जीवन दुःख एवं आभाव से भरा पड़ा था। कहते हैं, मसीहा को अपने देश में कभी नही पूजा जाता। प्रेमचंद आज विश्व-प्रसिद्ध हैं। उनकी कहानियो एवं उपन्यासों का अनुवाद अनेको भाषाओँ में हो चुका है। उन्हें हिन्दी साहित्य का एक अविलम्ब चिह्न माना जाता है। परन्तु अपने जीवान काल में, तो उन्हें प्रसिद्धि मिली, ना ही सम्रिध्य। अपनी सरस्वती प्रेस को चालू रखने में ही उनका जीवन गुज़र गया।

प्रेमचंद शब्दों में निपुण थे। अपनी भाषा, अपने लिखने के तरीके से, वो ऐसा समां बांधते, कि लगता उनकी कहानियो के पात्र कागज़ से निकल कर आपके सामने खड़े हों, आपसे बातें कर रहे हों। उनके सभी पात्र असली थे, कोई भी बनावटी था। उनकी कहानियो ने मुझ पर एक गहरी छाप छोड़ी। आज भी, उनकी पुस्तकें मेरे पास हैं।

मैं प्रेमचंद का आभारी हूँ, उन्होंने मेरे जीवन के कुछ क्षण बहुत ही यादगार बनाये।

धन्यवाद्!


This post first appeared on Abhishek Kumar, please read the originial post: here

Share the post

धन्यवाद् प्रेमचंद ! :-)

×

Subscribe to Abhishek Kumar

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×