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तरसता मन ....।।

दीया जलता रहा,मेघ बरसते रहे , उनके दीदार को ,ये नैन तरसते रहे। जा बसे हो जब से,पिया तुम परदेस में, नैन हर पल उसी राह में ,ये भटकते रहे। टीश सी उठती है,इस दिल के ज़ख़्म में, दर्दे -जुदाई में बिलखते रहे,सिसकते रहे। बीते लम्हों की माला ,इक 2पिरोती रही, लड़ी बनती रही,दर्द के लम्हे बिखरते रहे। तेरी सूरत की इस दिल पर,लगी है मुहर, धुंधली यादों के साये भी, निखरते रहे। कमलेश,उम्मीद है ,वापस आ जाओगे, दूर

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तरसता मन ....।।

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