आज पढ़ रहा था/ भुकड़ी लगे रोटियों को, थोड़ी पिली जरूर पर शब्दश: सब कुछ अभी भी लिखा है उन रोटियों पर माँ का प्यार और सुझाव, पिता का स्नेह और मानी-आर्डर के पावती का जिक्र, बहन के साथ झोटा-पकड़ लड़ाई पर माँ की डांट , हर रोटियां कुछ न कुछ जरूर कह रही हैं, उसी में दबा मिला एक और रोटी लिफाफे में बंद, यादे ताज़ा हो गयीं पहले प्यार की पहली चिट्ठी से, मै आज बेहद रोमांचित हूँ उन चन्द रोटियों पर पड़े