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इस कृषि वैज्ञानिक की खोज से भारत को होगी 100 करोड़ की सालाना बचत

India Papaya Farming Seeds : विदेशी कंपनियों से हर साल 100 करोड़ के पपीते के बीज आयात किए जाते हैं

India Papaya Farming Seeds : भारत में कृषि विज्ञान एक ऐसा विषय है जिसे आने वाली पीढ़ी के बीच आगे बढ़ाना बेहद जरूरी है.

ऐसा इसलिए क्योंकि देश के युवाओं के अंदर कृषि विज्ञान की जितनी अच्छी समझ रहेगी उतनी ही तेजी से हमारे किसानों की हालत में सुधार लाया जा सकता है.
कर्नाटक के केके सुब्रमणि भी कुछ इसी तरह की सोच रखते हैं और पपीते के बीजों पर काम करते हुए किसानों की मदद करने में लगे हुए हैं.
बता दें कि पपीता पूरे वर्ष उपलब्ध रहने वाला एक प्रकार का फल है जिसे हम सब्जी और कई अन्य तरीकों से भी खाते हैं. वहीं इसके कच्चे फल के सूखे लेटेक का इस्तेमाल एंजाइम की दवाइयां बनाने में भी काम आता है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल ताइवान स्थित लेडी बौड़ (आरएलडी) कंपनी से 100 करोड़ रुपये की कीमत से पपीता के बीज आयात किया जाता है.
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विदेश मुद्रा की होगी बजत
विदेश से पपीते के बीज के आयात को कम करने के लिए ही अनुभवी संयंत्र ब्रीडर केके सुब्रमणि ने भारत में एफ 1 संकर विविधता वाले पपीते का बीज विकसित किया है.
अपनी इस वैज्ञाननिक खोज को लेकर सुब्रमणि का मानना ​​है कि चीजें जल्द ही बदलने जा रही हैं, और देश जल्द ही मूल्यवान विदेशी मुद्रा की बचत करेगा.
सुब्रमणि कर्नाटक के मंड्या स्थित अग्रिमा बायोसाइंस के संस्थापक हैं और इसी कंपनी ने पपीता और मैरीगोल्ड प्रजनन का एक अलग तरह का बीज विकसित किया था जिसे फ्रांस में लीमाग्रेन ने खरीदा है जो दुनिया की चौथी सबसे बड़ी बीज कंपनी है.
हालांकि अधिकांश भारतीय किसान लाल लेडी बौने की वैराइटी के पपीते के बीज का इस्तेमाल करते हैं जिसे ‘ताइवान 786′ पपीता के रूप में भी जाना जाता है.
जानकारी के लिए आपको बता दें कि इस बीज के द्वारा उगाए गए पौधे पर फल केवल आठ महीनों में ही फल आ जाता है और एक पौधे से लगभग 60 किलोग्राम तक पपीते के फल होते हैं.
यहां दिलचस्प यह है कि भारतीय किसान एक किलो बीज के लिए 3,00,000 रुपये का भुगतान करते हैं जिसमें केवल 48000 पपीते के फल निकलते हैं.
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पपीता होता है पुल्लिंग और स्त्रीलिंग
भारत में विकसित की गई 12 किस्मों में से आरएलडी बीजों से सबसे ज्यादा खेती की जाती है जो कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, केरल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों मे होती है.
पपीते की इस अनूठी फसल में नर और मादा दोनों तरह के फूल होते हैं मगर इनके लिंग का केवल तब ही पता चलता है जब वह फूल होते हैं. रोपण के 4.5 महीने बाद पपीता के इन फूलों में बहुत कम अंकुरण होता है और वायबिलिटी बहुत तेज हो जाती है.
केके सुब्रमणि ने बताया कि वर्तमान में लगभग 100 किलो बीजों का उत्पादन कृषि मैरा बायोसाइंस द्वारा किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि उनके द्वारा तैयार किए बीजों को या तो बीज बेचने वाली कंपनियों को बेच दिया जाता है या तो इसका निर्यात कर दिया जाता है.
पिछले सात वर्षों में, सुब्रमणि ने हवाई, जापान, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील जैसे देशों का दौरा किया है और इन क्षेत्रों के मूल पपीता के बीज एकत्र किए हैं.
ऐसा करने से वह न केवल रोगों से मुक्त पपीता पौधों को विकसित कर पाए हैं बल्कि फल के अंदर मिठास, रंग और इसे फायदेमंद भी बनाया है.

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