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अमीर भाई अपनी ग़रीब बहनों की तरफ नफ़रत की नज़र से देख रहे हैं

अमीर भाई अपनी ग़रीब बहनों की तरफ दया-करुणा की नहीं नफ़रत की नज़र से देख रहे हैं


अमीर भाई अपनी ग़रीब बहनों की तरफ दया-करुणा की नहीं नफ़रत की नज़र से देख रहे हैं, जबकि अमीर भाई का फ़र्ज बनता है कि गरीब बहन की मदद करें, मदद नहीं करें तो कमों का फल यहीं मिल जाता है शादी के बाद बहन की ज़िंदगी पूरी तरह से बदल जाती है, या तो वह महलों में राज करती है या नहीं तो छोटे से घर में तड़प-तड़पकर जी लेती है। इसलिए बहनों की रक्षा करना उनके माता-पिता का ही फ़र्ज नहीं है बल्कि भाईयों का भी फ़र्ज बनता है। आजकल तो भाईयों को अपनी बहन की ग़रीबी दिखाई ही नहीं देती है, भाई लोग अमीरी के मज़े लूटते हैं तो बेचारी बहन सड़-सड़कर जी रही होती है। भाई अपनी पत्नी और बच्चे का गुलाम हो जाता है। तो वह बहन का कुछ अच्छा नहीं चाह सकता है। लेकिन भाईयों को चाहिए कि वे लोग बहन की सदा के लिए मदद करते रहें। दो भाईयों की एक बहन की शादी एक बहुत ही बड़े महल जैसे घर के बेटे से हुई। भाईयों ने सोचा कि बहन को अब जीवन भर पलटकर देखने की ज़रूरत ही नहीं है। मन में सोच रहे थे कि चलो हमारी पीड़ा तो चली गयी, तीस साल की हो गयी थी, कोई उससे शादी भी नहीं कर रहा था। अब तो महल में वह राज करेगी। लेकिन किस्मत बदलते देर नहीं लगती है, बहन का सारा महल बिक गया क्योंकि व्यापार में बहुत बड़ा घाटा हो गया। बहन के भाइयों ने घाटा देखा, बहन को क़र्ज में देखा तो उससे मुँह फेरने लग गये। नहीं तो हर महीने बहन के भाई जाकर वहाँ पर भरपूर भोजन करके आया करते थे। जीजाजी को राजा की तरह सम्मान देते थे, पैसा चला गया तो जीजाजी से बात ही अलग तरह से करने लग गये तो जीजाजी ने कहा मुझे मेरे सालों से नफ़रत हो गयी है, वे मेरे घर ही न आये तो अच्छा है, साले सोचकर खुश हुए कि चलो लुटे हुए दामाद से पीछा तो छूटा। नहीं तो वह हमसे पैसा माँगने लग जाता। भाई के घर बहन मिलने आती तो भाइयों ने केवल यही कहा कि जीजाजी ने बेवकूफी करके सारा व्यापार डुबो दिया। बहन कहती थी कि जीवन में उतार-चढ़ाव आता ही रहता है। और आजका हर व्यापारी जीवन में एक बार धूल ज़रूर चाटता है। ज़रूरी है कि हम इस मुश्किल समय में भी मिल कर रहें। लेकिन भाइयों ने बहन को पैसे से मदद करनी बंद कर दी। बंद क्या की, मदद शुरू भी नहीं की। वह बहन से कहते थे कि तू आकर जितना भोजन करना है कर ले हम वैसे भी ग़रीबों और भिखारियों के लिए अलग से निकालकर रखते ही हैं। यह सुनकर बहन बहुत रोयी, उसने कहा मेरा हाथ बँटाने के बजाय तुम लोग ताने क्यों मार रहे हो। तो भाईयों ने कहा कि जीजाजी ने कबाड़ा कर दिया तो हमारी जान पर क्यों रो रही हो। बहन ने कहा तुम मेरे बड़े भाई हो, तुमने घर ख़रीदा तीस लाख का, फिर दूसरा घर ख़रीदा पचास लाख का। दूसरे घर को किराये पर दिया बीस हज़ार में। दो साल के लिए उस बीस हज़ार में से दस हज़ार की मदद तो कर दो। फिर वह छोटे भाई की तरफ देखकर कहने लगी कि तुमने अभी-अभी पाँच लाख की ज़मीन पंद्रह लाख में बेची है, उसमें से तीन लाख उधार के तौर पर दे दो, बाद में ज़रूर लौटा दूँगी। लेकिन दोनों भाईयों की पत्नी ने कहा कि हमारे बच्चे की पढ़ाई हम रोक दें क्या, बहन ने कहा भाभी मुझे पहले मझधार में से निकालने के बारे में सोचो कल को हम दोबारा अमीर हो गये तो आपके बच्चों को हम ही पढ़ा देंगे। बहन ने कहा कि तुम दोनों भाईयों के पास दो-दो करोड़ रुपया है मुझे दोनों मिलकर दो-दो हज़ार रुपया भी दे दोगे तो कम से कम हमारे घर का राशन उसमें आ जायेगा। हम भूखों तो नहीं मरेंगे। तभी बहन की माता भी यह सब सुनकर बहुत दुखी हो गयी। बहन की माता को पिता की पेंशन आती थी, तो बहन की माता बेटी के साथ चली गयी, जिससे माता की दस हज़ार पेंशन से बेटी यानी बहन का घर पाँच साल तक चल पाया। माता जब बेटी के पास जा रही थी तो बेटों के मुँह से लार टपक रही थी, क्योंकि वह माता दस हज़ार की टकसाल थी, लेकिन दुनिया की हरेक माता को अपनी बेटी से ज़रूर प्यार होता है, बेटा और बेटी में वह शादी के बाद बेटी को ही चुनती है, और बेटियाँ आजकल माता-पिता को जितना पूछती है, उतना तो बेटे बिल्कुल नहीं पूछा करते हैं। इधर पाँच साल होने के बाद भी दामाद के हालात नहीं सुधरे। लेकिन माता की पेंशन से बेटी का घर आराम से चल पा रहा था, दामादजी कई बार रोते रोते कहते भी थे कि आप नहीं होते तो हम आत्महत्या तक कर लेते। माता ने कहा कि दामादजी आपमें कोई नशे की लत नहीं, आप व्यवहार के भी राजा हो, अब व्यापार चलना तो किस्मत की बात होती है, नहीं चला तो नहीं चला, ईश्वर की मज़ों है, दामादजी ने कहा कि सारी दुनिया मुझे गालियाँ दे रही हैं, केवल आप ही साथ दे रही हो, माता ने कहा तुम मेरे बेटे समान हो। तब तक तो बहन के दोनों भाई बहन से नाता ही तोड़ चुके थे, उल्टा वह कहते थे कि माता का पेंशन का हिस्सा तो हम दोनों बेटों को मिलना चाहिए था। सारा का सारा बेटी ही खाकर हमको माता पिता के धन से दूर रख रही है। बहुएँ तो बहन की माता को पकड पकडकर लाती थी कि पेंशन उनके हिस्से में आ जाये लेकिन माता यही कहती थी कि जब तक मेरी बेटी संकट में है मैं बेटी के पास से हिल भी नहीं सकती हूँ, क्योंकि मैं हिली तो बेटी-दामाद आत्महत्या कर सकते हैं। बेटी की माता के साथ एक तरह से अच्छा ही हो रहा था, वह बेटी की मदद कर रही थी, और बेटी और उसके बच्चे मिलकर बहन की माता की भरपूर सेवा कर रहे थे, माता का बुढापा भी वीआईपी की तरह गुजर रहा था, पैसा आते ही आजकल बेटे माता-पिता को कचरे का डिब्बा समझने लगते हैं। लेकिन बेटी की परेशानी आने से माता को बहुत ही सम्मान से रखा जा रहा था। क्योंकि वह दस हज़ार की तिजोरी जो थी। मगर यह पैसा बेहद ज़रूरतमंद को दिया जा रहा था। आजकल समाजों में यही हो गया है कि दूसरे का दुख देखने के बजाय दुखी आदमी को ही टॉर्चर किया जाता है, हालाँकि उनको पता होता है कि हम गलत कर रहे हैं फिर भी वे लोग बहनों को सताते ही चले जाते हैं।
इधर बहन का जीवन अच्छी तरह से गुजर रहा था, तो उतने में उधर भाइयों की दोनों पत्नियों को बहुत बड़ी बीमारी लग गयी। तीन साल के भीतर ही दो बार बड़ी बहू को हर्निया हो गया। जिससे बड़े भाई का एक लाख रुपया ख़र्च हो गया। दूसरे भाई की बहू की दिमाग की नसें ख़राब हो गयीं तो उसका दो लाख रुपया ख़र्च हो गया। दोनों भाई यही कह रहे थे कि माता की पेंशन हमको मिल रही होती तो हम दोनों के इलाज में पैसे लगा दिये होते। दोनों भाई गये भी थे, माता से मिलकर कहा भी कि हमको कुछ पैसे दे दो, ताकि हम पत्नियों का इलाज करवा सकें।

तब बहन ने भाइयों को बहुत खरी खोटी सुना डाली, कहा कि आज तुम दोनों भीख का कटोरा लेकर माता के पास क्यों आये हो, जब मैं तड़प रही थी, तब तो तुम लोग मुझेडाँट रहे थे। यह सब कर्मों का ही फल है कि मेरी मुसीबत में तुम लोग काम नहीं आये तो भाभियों को ही भगवान ने बतला दिया कि घर की बेटी का अपमान करने वाले का क्या हश्र होता है। बहन ने छोटे भाई से कहा कि मैंने तुमसे ज़मीन के प्रॉफिट में से तीन लाख माँगे थे, तुमने नहीं दिये, देखो तुम्हारी बीवी के इलाज में दो लाख रुपया लग गया, तो भगवान की मार सहनी पड़ती है, सच ही कहा है कि भगवान की मार में आवाज़ नहीं होती है, वह वहाँ लाकर मारता है जहाँ इंसान पानी भी नहीं माँगने के लायक रह जाता है। बहन यह सब कहकर जीत की खुशी की तरह ज़ोर ज़ोर से हँस रही थी, माता ने कहा कि तेरे सगे भाई हैं उनपर इस तरह से हँसा नहीं करते, बहन ने कहा कौन सगा रहा माता हमारा। अपने जो अपने थे, वो आज पराये हो गये हैं। कहकर बहुत रोने लग गयी, माता ने कहा भाइयों को इतना खरी खोटी नहीं सुनाते। बहन ने कहा सुनाओ नहीं तो सबक़ नहीं मिलता है माताजी। आजकल का ज़माना ऐसा है कि वक्त आने पर सुना देना चाहिए। मैं मजबूर थी भाईयों ने कितना नहीं सुनाया था।


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