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श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी और योगदान Srinivasa Ramanujan Biography In Hindi

भारत की इस गौरवशाली भूमि पर कई महान लोग जन्मे है जिन्होंने अपने कार्य से दुनिया मे भारतवर्ष का नाम रोशन किया है। भारत ने कई महान वैज्ञानिक दुनिया को दिये है जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किये है। ऐसे ही एक महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन Srinivasa Ramanujan थे जिन्होंने गणित के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया था। विलक्षण प्रतिभा और अद्भुत व्यक्तिव के धनी रामानुजन के बारे इस आर्टिकल Ramanujan Biography in hindi में चर्चा करेंगे।


श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी Srinivasa Ramanujan Biography In Hindi

श्रीनिवास रामानुजन का पूरा नाम श्रीनिवास रामानुजन अय्यंगर था। रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर, 1887 को तमिलनाडु राज्य के कोयम्बटूर में हुआ था। रामानुजन के पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था जो एक साड़ी की दुकान में कार्य करते थे और माता का नाम कोमलतामल्ल था।
तीन वर्ष की आयु तक रामानुजन बोल नही पाते थे। रामानुजन की प्रारंभिक शिक्षा तमिल में थी। रामानुजन ने प्राइमरी में अच्छे नम्बर लाकर जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। श्रीनिवास रामानुजन को यही से गणित में रूचि शुरू हुई । 

श्रीनिवास रामानुजन के विद्यार्थी दिनों का एक किस्सा मशहूर है। अध्यापक बच्चो को पढा रहे थे कि अगर किसी भी संख्या को उसी संख्या से भाग देते है तो उत्तर सदैव 1 आता है लेकिन रामानुजन इससे संतुष्ट नही हुए और उन्होंने अध्यापक से ही सवाल पूछ लिया कि अगर 0 को 0 से भाग दे तो क्या उत्तर 1 ही आएगा। इतना सुनकर अध्यापक चकित रह गए और कोई उत्तर ना दे पाए।

श्रीनिवास रामानुजन गणित विषय में बहुत होशियार थे और वो गणित के कठिन सवाल भी बड़ी आसानी से हल कर देते थे।  वो बीए के छात्रों को गणित की ट्यूशन पढ़ाते थे जबकि वो खुद 7 वी कक्षा में थे। रामानुजन ने केवल 13 वर्ष की आयु में ही लोनी की ट्रिग्नोमेट्री को हल कर दिया था और मात्र 16 वर्ष की आयु में ही G.S. Carr की 5000 से अधिक प्रमेय को सिद्ध किया था।

रामानुजन को केवल गणित में ही रुचि थी इसीलिए वो ग्यारवी कक्षा में बाकी के विषयों में फैल हो गए थे और इस समय रामानुजन को मिलने वाली छात्रवृत्ति भी बंद हो गयी थी। आजीविका चलाने के लिए रामानुजन गणित की ट्यूशन चलाते थे और किसी छोटी कंपनी में बहीखाते का हिसाब देखते थे। रामानुजन अपनी 12 वी कक्षा में भी फैल हो गए । इसके बाद रामानुजन बेरोजगार हो गए क्योंकि रामानुजन के पास ना तो कोई डिग्री थी और ना ही रोजगार था।

श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी Ramanujan Biography In Hindi

1908 में श्रीनिवास रामानुजन का विवाह हो गया और उनकी पत्नी का नाम जानकी था। रामानुजन नौकरी की तलाश करते रहे और आखिरकार उनको एक डिप्टी कलेक्टर और गणित के विद्वान जिनका नाम रामास्वामी अय्यर था ने नौकरी पर रख लिया जहाँ रामानुजन की तनख्वाह 25 रुपये प्रति महीना थी। यही पर रामानुजन का पहला शोधपत्र प्रकाशित हुआ जिसका नाम बरनौली संख्याओं के कुछ गुण था। यह शोधपत्र जनरल ऑफ इंडियन मैथेमैटिकल सोसायटी में प्रकाशित हुआ था।

इसी दौरान श्रीनिवास रामानुजन की बातचीत विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डी से हुई। यह बातचीत पत्र व्यवहार के जरिये हुई थी। रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी को कुछ प्रमेय भेजे थे लेकिन हार्डी को वो प्रमेय समझ मे नही आये लेकिन इसके बाद जब प्रोफेसर हार्डी को रामानुजन की योग्यता का पता चला तो वो रामानुजन के मुरीद हो गए।
प्रोफेसर हार्डी के आग्रह पर रामानुजन पहली बार लन्दन गए। लन्दन में रहने के दौरान रामानुजन ने बीए की डिग्री हासिल की और कई गणितीय सूत्रों की भी खोज की थी। रामानुजन को ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी का सदस्य नामित किया गया था और वो रॉयल सोसाइटी के इतिहास में सबसे कम उम्र के सदस्य थे।

Srinivasa Ramanujan In Hindi

रामानुजन को लन्दन रास नही आया और वो बीमार हो गए, उनको क्षयरोग हो गया था। उस समय इस रोग की कोई दवा नही थी। करीब 5 साल लन्दन में रहने के बाद वो वापस भारत लौट आये लेकिन रामानुजन का स्वास्थ्य लगातार खराब हो रहा था। भारत आने के बाद मद्रास विश्वविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी मिल गयी थी।
श्रीनिवास रामानुजन ने इसी दौरान एक शोधपत्र मॉक थीटा फंक्शन पर लिखा था। आज भी इस फंक्शन का उपयोग चिकित्सा विज्ञान में कैंसर को समझने में किया जाता है। रामानुजन ने अपनी जिन्दगी में 3884 प्रमेयों का संकलन किया था।

इसके बाद मात्र 33 वर्ष की आयु में 26 अप्रैल 1920 को गणित का यह जीनियस दुनिया को अलविदा कह गया।
श्रीनिवास रामानुजन ने अपनी पूरी जिंदगी गणित को समर्पित की थी। गणित में भारत का नाम बढ़ाया और आज विश्व के महान गणितज्ञ में रामानुजन का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है।

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