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सटा किग गली दिसावर की काली कमाई का राज़

सटा किग गली दिसावर

आज हम बात करेंगे सटा किग की जिसने लूट लिया देश का ख़जाना. जी हाँ आज हम आपको बताने जा रहा है उस सटा किग गली दिसावर के बारे में जिसने मटके के कारोबार से लोगों को अर्श से फर्श तक पहुंचाया. सटा किंग ने मटके का कारोबार देश में आज़ादी से पहले शुरू कर दिया. सट्टा गली से मशहूर मुंबई की गलियों में मटका आज भी बदस्तूर जारी है. सटा किग ने मटके को अमीरों का शौक बना दिया और गरीबों की लत. आज सटा किग को देश में मटके के कारोबार को चलाते 60 साल से ज्यादा वर्ष हो गए हैं. आपने ज़्यादातर स्टील का मटका, मट्टी का मटका इत्यादि सुना होगा. लेकिन सटा किग ने देश में लोगों को गली दिसावर, सट्टा चार्ट, दिसावर सट्टा जैसे चर्चित मटको की लत लगा दी. यह मटके हर दिन करोड़ों रूपये उगलते हैं.

सटा किग के मटके का जाल

हर कोई व्यक्ति पैसे के लालच में मटके के साथ अपनी किस्मत आज़माने की कोशिश करता रहता है. लेकिन आज जब मटका खुलता है तो बिलकुल भी ईमानदारी नहीं बरती जाती. ईनाम की राशी कुछ लोगों में बाँट कर बाकि का पैसा किंग अपनी जेब में रखता है. पहले मटके के इस खेल में काफी ईमानदारी बरती जाती थी लेकिन अब मटके के इस खेल में पहले से ही सब कुछ फिक्स होता है. यह सिर्फ लोगों को गुमराह करके उनके पैसे लूट लेते हैं इसलिए मटका की इन शाखों से दूर रहे जो इस तरह से हैं सट्टा गली, दिसावर सट्टा, गली दिसावर, सटा किग, सट्टा किग चार्ट इत्यादि और भी काफी नाम इसमें सम्मिलित हैं.

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मटके का असली सट्टा किग कौन?

मटके के ऊपर काफी सवाल लाजमी थे कि आख़िर ये मटका करोड़ों का कारोबार कैसे करता है. सट्टा गली दिसावर ने अपना नेटवर्क देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फैला रखा है. दुनिया भर से लोग अपना पैसा मटके पर लगाते हैं और मटका किग उन पैसों में से कुछ ईनाम की राशी में बाँट देता है और बाकि का पैसा खुद हड़प जाता है. मटका किग एक सट्टा चार्ट निकालता है जिसमें काफी अंक दिए जाते हैं लोग उन अंको पर अपना पैसा लगाते है और जिसका नंबर निकलता है उसे ईनाम की राशी दे दी जाती है. यही राज़ है मटके की काली कमाई का. देश में सट्टा किग गली दिसावर के नाम से मशहूर रत्न खत्री ने देश में मटके के इस कारोबार को फैलाया. रत्न खत्री एक ऐसा शख्स है जिसने मटके के काले कारोबार का नेटवर्क पूरे देश में फैलाया. अंग्रेजो के समय में मटका नाम का कोई भी खेल देश में नहीं था. उस समय कुछ लोग कपास के भाव पर सट्टा लगाते थे. कपास का भाव उस समय लंदन से टेलीग्राम द्वारा भेजा जाता था. रत्न खत्री ने इस खेल में बहुत पैसा देखा और इस खेल को मटके में बदल दिया. रत्न ने एक दिन प्रेस को बुला कर सामने बिठाया और सामने एक मटका और कुछ ताश के पते रखे. इन्ही ताश के पत्तों और मटके से उसने इस खेल को मटके का नाम दे दिया जो दुनिया भर में मशहूर हुआ. मटके को बंद करने के लिए सरकार ने काफी प्रयास किये लेकिन मटका अब हाई टेक हो चूका है और आज भी इसका खेल जारी है जोकि लोगों को पैसों के लालच में फ़साता जा रहा है.

नोट: हम किसी भी रूप में सत्ता मटका का प्रचार या प्रसार नहीं करते है यह पोस्ट सिर्फ आपको जानकारी देने के लिए बनाई गई है हमारा किसी भी सत्ता कंपनी से लेना देना नहीं है

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