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चन्द माहिया : क़िस्त 55

चन्द माहिया : क़िस्त 55

:1:
शिकवा न शिकायत है
जुल्म-ओ-सितम तेरा
क्या ये भी रवायत है

:2:
कैसा ये सितम तेरा
सीख रही हो क्या ?
निकला ही न दम मेरा

  :3:
छोड़ो भी गिला शिकवा
अहल-ए-दुनिया से
जो होना था सो हुआ

:4:
इतना ही बस माना
राह-ए-मुहब्बत से
घर तक तेरे जाना

:5:
ये दर्द हमारा है
तनहाई में बस
इसका ही सहारा है

-आनन्द पाठक--

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चन्द माहिया : क़िस्त 55

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