दीवानों कि बस्ती में एक पगली का पहरा था,
खुदा के बंदों पर उसका विश्वास भी तो गहरा था,
बेनक़ाब मुस्कुराती धूप सी खिलती थी वो,
अपनी ही सुध में बेखौफ घूमती थी वो,
कहती थी दुनिया नहीं है मनचले परवानो की,
ये जहाँ तो है खुदा के कुछ अफ़सानो की|Related Articles
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