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Essay on Disability in Hindi- विकलांगता पर निबंध




Essay on Disability in Hindi- विकलांगता पर निबंध 

हेलो दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में Essay on Disability in Hindi मतलब की विकलांगता पर निबंध पढ़ेगें! हमारा जीवन कदम कदम पर अनेक बाधाओ से भरा पडा है! इसलिए हमको हमेशा बहुत सारे परीछाओ और परीछण से गुजरना पड़ता है! हम सभी को अपने पूरी लाइफ में साहस , धैर्य , और उत्साह से कोई भी काम करना चाहिये! जब आप अपने जीवन में कोई भी काम साहस , धैर्य , और उत्साह से करेगें तो आपके सामने कोई भी problem हावी नहीं हो सकती है! इसलिए हमको ये कोशिश करना चाहिये की हम कभी भी अपने साहस , धैर्य, और उत्साह से हट ना पाये! और अपना हर एक काम साहस , धैर्य , और उत्साह के साथ ही करे! 

आज आप देख सकते है की हर एक देश में बिकलांग लोग रहते है! ज्यादातर लोग बिकलांगो के साथ अच्छा ब्यवहार नहीं करते है! आप एक अच्छे ब्यक्ति होने का परिचय तब दे सकते है! जब आप बिना किसी भेद भाव के किसी की मदद करते है! इसलिए हमको बिकलांग के साथ कभी भी बुरा ब्यवहार नहीं करना चाहिये! 


बिकलांग के लिए सफलता का दरवाजा खटखटाते रहना बहुत जरुरी है! इस सम्बन्ध में हेलर के द्वारा कहा गया ये वाक्य बिलकुल सही है! " जब एक  दरवाजा बंद होता है तो दूसरा दरवाजा खुल जाता है! लेकिन हम प्राय: इतनी देर तक बंद दरवाजे को देखते रहते है की हमे वह दरवाजा दिखाई नहीं देता, जो हमारे लिए खुला है! 


यदि आप एक बिकलांग हो या फिर कोई और हो हमारे लिए प्रगति के सारे रास्ते बंद नहीं होते है! लेकिन ये भी सच है की सभी रास्ते सभी के सामने खुल नहीं सकते है! अगर किसी के सामने कोई रास्ता बंद हो जाता है तो उसे दुसरे रास्ते की तलाश की कोशिश करना चाहिये! यही बात बिकलांगो के बारे में लागू होती है! मूक  एवं बधिर हो जाने से उनकी बोलने और सुनने की शक्ति खत्म हो जाती है! लेकिन इसका ये मतलब नहीं होता है की वह कुछ कर नहीं सकते है! वह उच्चतम पढाई कर सकते है और किसी भी एरिया में वह बड़े से बड़े स्तर पर जा सकते है! 


इसी प्रकार नेत्रहिन होने पर लोग अपनी शारीरिक , मानसिक शक्ति से युक्त होते है! वह अध्यापक , प्रोफेसर , कलाकार , साहित्यकार , आदि बन सकते है! इसलिए हम कह सकते है की बिकलांगता जीवन में बाधा तो बन सकती है परन्तु ऐसी बाधा नहीं बन सकती है की आप कुछ कर ही ना सके! 

बिकलांगता दो प्रकार की होती है शारीरिक और मानसिक! इसके कई स्तर है! पूर्ण बिकलांगता , अर्द्धबिकलांगता , और सामान्य बिकलांगता! बिकलांगता इन सभी कारणों से होती है जैसे- जन्म से , पोलियो जैसी बीमारी से और दुर्घटना से तथा युद्ध आदि कारण से होती है! जन्मजात बिकलांगता का कारण मुख्य रूप से कुपोषण है! बिकलांगता की संख्या दुर्घटना और युद्ध के कारण कई गुना अधिक बढ जाती है! बिकलांगता की समस्या का हल दो प्रकार से किया जा सकता है-


1- जो लोग जन्म से बिकलांग है उनका पुर्नवास किया जाय!

2- जिन कारणों से बिकलांगता की संख्या बड रही है उन कारणों को रोका जाये! 

कुपोषण , दुर्घटना और युद्ध को रोका या फिर कम किया जा सकता है! इसमें सरकार , समाज और ब्यक्ति की भूमिका हो सकती है! सरकार को इन सभी चीजों के बारे अच्छी तरह से सोच विचार करके इसको रोकने के लिए सही कदम उठाना चाहिये! सरकार के साथ साथ हम सभी को भी बिकलांगता को रोकने में अपना योगदान देना चाहिये! इसके साथ साथ हमको बिकलांगता से प्रभावित लोगो की मदद करनी चाहिये! उनके साथ हम सभी को बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिये! 


जन्मजात बिकलांगता को रोकने के लिए गर्भवती माँ को पोषण से युक्त आहार का सेवन कराना चाहिये! इसके साथ जन्म के बाद बच्चे और माँ दोनों को पोषण से युक्त आहार की भी इतजाम करना चाहिये! ऐसा करने का मुख्य कारण ये है की बिटामिन A की कमी से बच्चे अंधे हो जाते है! इसलिए बच्चे को नेत्रहिन से बचाने के लिए उनको  पोषण से युक्त आहार को देना चाहिये! समाज कल्याण बिभाग की ओर से इसका इतंजाम किया गया है! लेकिन इतना ही करना काफी नहीं है! इसको और ज्यादा करने की जरूरत है! और इस तरह का इतजाम देश के हर एक गावं में रहना चाहिये! 


रोगों से उत्पन्न होने वाली  बिकलांगता की रोकथाम की जा सकती है! पोलियो , टाईफाइड आदि से बचाव के लिए रोग निरोधक टिके लगाये जा सकते है! कुछ बीमारियों के टिके तो शैशवास्था में ही लगाये जाते है! ताकि कोई रोग न हो! साथ ही बच्चो के स्वास्थ की नियमित जांच होनी चाहिये! वाहन चलाते समय सतर्कता बरत कर सड़क दुर्घटना को कम किया जा सकता है! 


ज्यादातर बिकलांगो को घर परिवार और समाज में अनुकूल वातावरण नहीं मिलता! उनके प्रति उपेछा का ब्यवहार किया जाता है! इसके साथ साथ उनको दया भी दिखाई जाती है! कुछ बिकलांग ऐसे होते है जो अवसर मिलने पर सार्थक कार्य कर दिखाते है! पैरा ओलंपिक खेलो में बिकलागो के कीर्तिमान इसके उदहारण है! इसलिए हमको बिकलांग लोगो को किसी से कम नहीं आकना चाहिये! 


बिकलांगो ने शिछण , प्रशिछण  और दुसरे छेत्रो में भी अनेक प्रकार की समस्या को स्वीकार किया है! उन्होंने छमता और कार्यकुशलता के बल पर अपने सार्थकता को स्वीकार किया है! अत: समाज के नवनिर्माण में बिकलांगो की सार्थक भूमिका हो सकती है! जिसके लिए सरकार कृत संकल्प है! ऐसे में जन सहयोज द्वारा बिकलांगो की स्तिथी बेहतर हो सकती है! 


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