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सेव मेरिट सेव नेशन: सिर्फ़ गरीब हो आरक्षण का हकदार

आज आरक्षण की स्थिति यह हैं कि मानो हमारा संविधान कह रहा हैं कि काबिल मत बनो, दलित बनो...कामयाबी झक मारकर पीछे आयेगी!!! महाराष्ट्र शासन ने तो सुप्रीम कोर्ट एवं संविधान की गाईड लाइन को तोडते हुए आरक्षण की सीमा जो कि 50% थी उसे सिर्फ़ वोट बैंक एवं राजनीति की ख़ातिर 76% कर दिया। इसके कारण महाराष्ट्र अब सर्वाधिक आरक्षण वाला राज्य हो गया हैं। यह न सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट और संविधान का अपमान हैं, बल्कि सामान्य वर्ग के होनहार छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी हैं। इसके फलस्वरूप खुले प्रवर्ग के मेधावी विद्यार्थियों को अनेक महत्वपूर्ण सरकारी शिक्षा संस्थानों में प्रवेश मिलना कठिन हो गया है। यह समस्या केवल ओपन वर्ग के मेरिट विद्यार्थियों की ही नहीं, बल्कि सभी जाति समूह के मेरिट विद्यार्थियों की है। 

ओपन कैटेगरी वाले लोग सोचते हैं कि मुझे आरक्षण से क्या लेना-देना? मेरा बेटा तो मेरा बिज़नेस संभालेगा! यह सोच गलत हैं! क्योंकि छोटे बिज़नेस आगे कितने चल पायेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं हैं। दूसरी बात, बच्चे चाहे आगे जाकर बिज़नेस करे लेकिन क्या अभी उन्हें अच्छी शिक्षा का हक नहीं हैं? 

आरक्षण की जरुरत क्यों हैं? 
आरक्षण का मूल कारण उन जातियों या वर्गों को समाज में आर्थिक और सामाजिक रूप से आगे ले आना था जो सदियों से शोषित और प्रताड़ित थे। इस सोच में कहीं कोई कमी नहीं थी लेकिन इसके साथ-साथ जो सबसे ख़राब बात हमें नजर आती है, वह यह है कि आज़ादी के इतने साल बीतने के बाद भी आरक्षण से बहुत कम प्रतिशत लोगों को ही लाभ हुआ है। आरक्षण ने समाज को दो भागों में बांट दिया हैं। पिछड़ी जाति और सामान्य जाति। देश की जनता जो आपस में मिलजुल कर रहना चाहती हैं उसे राजनेताओं ने वोट बैंक के लिए जुदा कर दिया हैं। ये बात निम्न पंक्तियों से स्पष्ट की जा सकती हैं- 
मंदिर में दानाचुग कर चिड़िया मस्जिद में पानी पीती हैं… 
मैं ने सुना हैं कि राधा रानी की चुनरी, कोई सलमा बेगम सीती हैं... 
एक रफी था महफिल महफिल, रघुपति राघव गाता था... 
एक प्रेमचंद बच्चों को, ‘ईदगाह’ सुनाता था... 
फ़िर क्यों हो गए हम जुदा-जुदा कि आज जोड़ने की बात होती हैं!!! 
आज की तारीख में अगर हम देखें तो गांव के एक घर में जिसे आरक्षण के चलते नौकरी मिली, उसके परिवार की अगली पीढ़ी को भी यही लाभ मिला और वह आगे बढ़ती गयी। वहीं बगल के सौ परिवार जो इसका फायदा नहीं उठा पाए, वह आज भी उसी हालत में जी रहे हैं! सोचने वाली बात हैं कि आखिर हमें आरक्षण की जरुरत ही क्यों हैं? जिसमें दम होगा वो अपनी मेहनत के बल पर आगे बढेगा। हां, उसकी सहायता ज़रूर की जानी चाहिए जिन्हें सचमुच सहायता की जरुरत हैं। लेकिन वास्तव में सहायता उन लोगों की हो रही हैं जिन्हें इसकी आवश्यकता नहीं हैं! जो लोग कार में घूम रहे हैं, एयर कंडीशनर में रह रहे हैं, उन्हें आरक्षण क्यों मिलना चाहिए? क्या सिर्फ़ पिछड़ी जाति वाले ही भूखों मर रहे हैं और जो उच्च जाति के हैं वो रोज घी के पराठे खा रहे हैं? असल में गरीबी और बेरोज़गारी हर जाति में हैं। फ़िर आरक्षण जातिगत आधार पर क्यों होना चाहिए? शिक्षा में फीस उनकी माफ़ होनी चाहिए जो उसे चुकाने में असमर्थ हो। 

आरक्षण देने से पहले इन बातों पर गौर करना ज़रुरी हैं- 
• पुराना जातिवाद बेशक गलत था पर क्या नया जातिवाद सही या न्यायपरक हैं? नया जातिवाद विषमता को स्थाई बना कर ज्ञान का सहज विकास कुंठित कर रहा हैं। 
• एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में बेरोजगारी के कारण 50 सुलभ शौचालय ब्राह्मण जाति के लोग साफ़ कर रहे हैं! इसलिए जाति के आधार पर आरक्षण देना सभी प्रकार से गलत हैं। 
• आरक्षण के कारण प्रतिभा पलायन में वृद्धि हो रही हैं। 
• जिस मुल्क में अपनी मेहनत की बजाय आरक्षण की कमाई खाने वालों की तादात ज्यादा हो वो सुपर पावर बनने का सपना नहीं देख सकता। 
• समस्त भारतवासी एक ही माता की संतान हैं। लेकिन एक ही माता की संतान होते हुए भी कोई आरक्षण पाता हैं, तो कोई आरक्षण की भेदभाव पूर्ण नीति के चलते बेरोज़गारी जैसी समस्या का सामना करता हैं! 
• जब समाज जातिवाद को भुलना चाहता हैं, तो राजनितिज्ञ इसे बढावा क्यों देते हैं? 
• क्या आपने कभी गौर किया कि अन्य सरकारी संस्थानों की उपलब्धियाँ इसरो जैसी क्यों नहीं हैं? क्योंकि इसरो आरक्षण के आधार पर वैज्ञानिक नहीं लेता! अन्य भारतीय संस्थानों में 50 फीसदी कर्मचारी आरक्षण के आधार पर लिए जाते हैं। 
• क्या राष्ट्र को कमजोर करके कमजोर व्यक्ति को बलवान बनाया जा सकता हैं? 
• आरक्षण से बने डॉक्टर के आगे यदि #आरक्षित लिखवाया गया तो उसके पास इलाज करवाने बहुत ही कम लोग जायेंगे! 
• आरक्षित व्यक्ति अपने जातीय गुणों के कारण नौकरी पाने के लिए आश्वस्त रहता हैं इसलिए वो कदापि अपनी कार्यकुशलता और प्रतिभा को बढाने की चेष्टा नहीं करता और इस तरह वो खुद अपना दुश्मन बन जाता हैं! यह बात नीचे दी हुई तस्वीर से स्पष्ट होती हैं।
फेसबुक से साभार

• अमेरिका के 35% डॉक्टर भारतीय हैं, नासा के 36% वैज्ञानिक भारतीय हैं, माइक्रोसॉफ्ट के 34% कर्मचारी भारतीय हैं, IBM के 28% कर्मचारी भारतीय हैंं...लेकिन फ़िर भी हमारा देश पिछड़ा हुआ हैं! क्योंकि स्वार्थी नेताओं ने वोटों के लिए प्रतिभाओं को मारकर आरक्षण को बढावा दे रखा हैं!! 
• जिस जाति के नाम से आरक्षण लिया जाता हैं, उसी जाति के नाम से पुकारने पर हरिजन एक्ट लग जाता हैं! क्या ऐसे घटिया क़ानूनों से मुक्ति नहीं मिलनी चाहिए? 
• आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आरक्षित बच्चों की फ़ीस या तो माफ होती हैं या उन्हें बहुत ही कम फ़ीस भरनी पडती हैं। आरक्षित बच्चों की फिस ओपन कैटेगरी वाले आय कर दाता जो आय कर देते हैं उस कर से भरी जाती हैं। यह विडंबना ही हैं कि एक ओर तो ओपन कैटेगरी वालों के लिए सिर्फ़ 24% सीटे बची हैं और ये ओपन कैटेगरी वाले लोग ही आरक्षित बच्चों की फीस भरते हैं! 
• आरक्षण के कारण अधिक प्रतिभाशाली लोग पिछड़ी जाति वालों से पिछड़ जाते हैं, जिस के फलस्वरुप उन में कुंठा का जन्म होता हैं।

सेव मेरिट सेव नेशन (Save merit-save nation movement)-
महाराष्ट्र सरकार की 76% आरक्षण की राजनिति के विरोध में पूरे महाराष्ट्र में कई जगहों पर सेव मेरिट सेव नेशन समिति द्वारा रैलियां की जा रही हैं। Save merit-save nation समिति की प्रमुख मांगे निम्नानुसार हैं- 
1) आरक्षण को 50% तक ही सीमित रखा जाए। 
2) हर 5 वर्ष में आरक्षण नीति पर पुनर्विचार किया जाए। 
3) आरक्षण वास्तव में ज़रूरतमंद को मिल रहा है या नहीं इसकी पूरी जांच की जाए। 
4) ‘क्रिमीलेयर’ का प्रावधान सभी आरक्षित वर्गों में लागू होने, इसमें किसी को विशेष छूट नहीं दी जाए। 
5) आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार केवल अपने आरक्षित वर्ग के कोटे से ही सीट ले, उसे ओपन में दाख़िला न दिया जाये। 
6) जिन्हें आरक्षण का लाभ entry point पर मिल गया, उन्हें दोबारा वह लाभ नहीं मिलना चाहिए। उदाहरण: एक उम्मीदवार को ग्रेजुएशन पर आरक्षित सीट का लाभ मिल जाने पर पुन: पोस्ट ग्रेजुएशन लेवल पर आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। सरकारी पदोन्नती में भी यहीं नियम लागू होना चाहिए। 
7) गलत तरीके या धोके से जो जाति या आय का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करते हैं, उन्हें बेदखल करने का प्रावधान हो। 

आरक्षण का सही तरीका 
आरक्षण का सही तरीका तो यह था कि आरक्षण व्यवस्था को विस्तार देने की बजाय इसे धीरे धीरे घटाकर ख़त्म कर दिया जाता। लोगो की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाता, ताकि आरक्षण रूपी सहारे की किसी को जरुरत ही न पड़ती और योग्य लोग चुनकर योग्य पदों पर जाते। अगर घोड़ा गधे से तेज दौड सकता है तो क्या घोड़े के पैर मे आरक्षण कि जंजीर बांध दे?? जिससे गधा आगे निकल जाये....तेज चलना घोड़े कि प्रतिभा हैंं, कमजोरी नहीं....! सोचिए, अगर 40% नंबर पाने वाला पुलिस अधिकारी बन जाता है, और 80% नंबर पाने वाला रोजगार न मिलने के कारण चोर बन जाता है, तब क्या वो S.P साहब कभी उस चोर को पकड़ पायेंगे जो उनसे ज्यादा दिमाग रखता हैं? इसलिए सिर्फ़ गरीब ही हो आरक्षण का हकदार, चाहे वे किसी भी जाती के हों!! क्योंकि गरीब...गरीब ही होते हैं..और ग़रीबों की कोई जाति नहीं होती...!!!

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