''दिपा, तुमने शिल्पा से बात की क्या? वो अपनी किटी ज्वाइन कर रहीं हैं न?'' प्रिती ने पूछा। दिपा ने कहा- ''हां, मैंने बात तो की थी। लेकिन शिल्पा ने मना कर दिया। अंजली ने पूछा- 'क्यों? दिपा ने बताया कि,"उसकी इच्छा तो बहुत होती हैं हम सबके साथ इंज्वाय करने की...लेकिन उसके पास वक्त नहीं हैं।'
प्रिती, दिपा, अंजली मध्यमवर्गिय परिवार की हमउम्र महिलाएं हैं। इनकी किटी में पंद्रह महिलाएं शामिल हैं। महीने में एक बार बारी-बारी से कभी किसी के यहां तो कभी किसी के यहां जमा होती हैं। मौज-मस्ती, मेल-मिलाप, दो-चार गेम्स खेलना और नाश्ता-पानी का दौर चलता हैं। महीने में एक बार ही सही, पर हम उम्र सहेलियों के साथ थोड़ी सी गपशप हो जाती हैं और इधर-उधर के सभी के हाल-चाल पता चल जाते हैं। कूल मिला कर माइंड फ्रेश हो जाता हैं। इन लोगों की इच्छा थी कि शिल्पा जो 4-5 महिने पहले दिपा के अपार्टमेंट में रहने आई थी, इनकी किटी ज्वाइन कर ले क्योंकि शिल्पा खानदानी रईस थी। उस के पति बैंक मैनेजर थे। बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे थे और शिल्पा भी पढ़ी-लिखी सलीकेदार महिला थी। ये लोग अपनी किटी में ऐसी ही महिलाओं को जॉइन करवाती थी जिसमें ऐसी खुबियां हो। ताकि उन्हें एक अच्छी सहेली मिले।
लेकिन जैसे ही दिपा ने बताया कि शिल्पा ने किटी जॉइन करने से मना किया हैं तो सभी के तेवर बदल गए। उन्हें ये अपना अपमान सा प्रतीत हुआ क्योंकि शिल्पा ने कहा था कि उसके पास वक्त नहीं हैं। प्रिती ने कहा- 'सब बहाने हैं! ऐसे कौन से काम में व्यस्त रहती हैं मैडम? बर्तन, कपडा और झाडू-पोंछा करने के लिए तो कामवाली बाई हैं ही। सिर्फ़ खाना ही तो बनाना होता हैं। हम सभी के घर में जैसे कोई काम ही नहीं रहता इसलिए किटी जॉइन करते हैं!''
एक आवाज आई- ''सच तो ये हैं कि उसके पति इतनी बड़ी बैंक के मैनेजर हैं, उनकी मोटी तनख्वाह और अपनी खानदानी रईसी का घमंड हैं उसे।'' दूसरी ने कहा- ''तो हम कौन से फक्कड घर से हैं? हमारे पति बिजनेस में हैं तो क्या हुआ, वे भी लाखों कमाते हैं। उपर से बोलती हैं कि वक्त नहीं हैं। आखिर दिन भर करती क्या हैं मैडम?'' तीसरी ने बहुत ही रहस्यमय आवाज में कहा- ''तुम्हें पता हैं, मैंने कई बार शिल्पा को दोपहर दो बजे घर से निकलते और चार-साढ़े चार बजे वापस आते देखा हैं। जब वक्त की कमी हैं तो रोज-रोज दो-ढ़ाई घंटे कहां जाती हैं?'' प्रिती ने कहा- ''मुझे तो लगता हैं कि दाल में जरुर कुछ काला हैं'' ''अरे नहीं पूरी दाल ही काली हैं। बुढ़ी सास को सातवी क्लास में पढ़ने वाली बेटी के भरोसे छोड़कर निकल जाती हैं घूमने फिरने। पतिदेव को तो पता भी नहीं होगा क्योंकि वो तो शाम को 7-8 बजे ही आते हैं। बुढ़ी सास बेचारी किससे बोले? उसे रहना तो बहू के पास ही हैं।''
इतनी देर से दिपा चुपचाप इन लोगों की बाते सुन रही थी। लेकिन अब उसकी सहनशक्ती जबाब दे गई। उसने थोड़ा नाराज होकर जोर से कहा- ''चूप हो जाओ तुम सब! तुम लोगों को शिल्पा के बारे में मालूम ही क्या हैं? जो मन में आए वहीं बोले जा रही हो! मेरा फ्लैट उसके फ्लैट के बिल्कुल सामने ही हैं अत: मुझे उसकी सच्चाई पता हैं। उसकी सच्चाई जानोगे तो खुद के कानों पर विश्वास नहीं होगा। मुझे कई बार महसूस होता हैं कि उसकी महानता के आगे मैं बहुत छोटी हूं।'' सभी महिलाएं दिपा का तमतमाया चेहरा देख कर दंग रह गई क्योंकि दिपा निहायत ही शांत स्वभाव की महिला थी। न किसी के लेने में और न ही किसी के देने में। अंजलि ने पूछा, ''जरा हम भी तो सुने तुम्हारी पडोसन की महानता के किस्से!''
दिपा ने कहा, ''शिल्पा अपनी बुढ़ी सास का पूरा ख्याल रखती हैं।'' एक ने बीच में ही टोक दिया, ''वो तो हम सब भी रखते हैं। इसमें नई बात क्या हैं?'' दिपा ने कहा- ''हमारे और उसके ख्याल रखने में बहुत फर्क हैं। उसकी सास अपने हाथ से नहा भी नहीं सकती। शिल्पा खुद अपनी सास को नहलाकर साड़ी पहनाकर चोटी आदी बनाती हैं।'' एक आवाज आई- ''क्यों, उनके पास तो बहुत पैसा हैं न! क्या वो सास को नहलाने के लिए कामवाली बाई नहीं रख सकती?' 'अरे, कंजूष होगी' दिपा ने कहा- 'यहीं तो फर्क हैं शिल्पा और हम में! शिल्पा कहती हैं मैं जिस तरह प्रेम और शांती से सास को नहलाती हूं, उतने प्रेम और शांती से कामवाली बाई थोड़े ही नहलाएगी। और मेरे नहलाने से मम्मी जी को जो मानसिक शांती मिलेगी कि मेरा काम स्वयं मेरी बहू करती हैं, इस सोच से उनके दिल को जो तसल्ली मिलेगी वो कमवाली बाई के नहलाने से थोड़े ही मिलेगी? वो उसकी सास के पसंद के हिसाब से ही नाश्ता और खाना बना कर देती हैं। हम लोग तो सास-ससुर का बाथरुम धोने में भी नाक सिकोडते हैं! खुद का तो लैटरीन-बाथरुम हम फ़िर भी धो लेती हैं। लेकिन हमारे घरों में सास-ससूर का और जनरल वाला लैटरीन-बाथरुम कामवालियां ही धोती हैं। लेकिन तुम लोगों को जानकर हैरानी होगी कि उसकी सास के कपड़े कई बार भर जाते हैं। वो गंदे कपड़े भी शिल्पा खुद साफ़ करती हैं और वो भी प्रेम से बिना किसी बडबड के!'
'अच्छा-अच्छा ठीक हैं! जब बुजुर्ग सास की इतनी ही फ़िक्र हैं तो हर रोज दोपहर दो बजे से लगभग साड़े-चार बजे तक मैडम कहां जाती हैं?' एक महिला ने तंज कसा। दिपा बोली-'दो से साड़े-चार बजे तक उसकी सास सामान्यत: सोती हैं। इसलिए वो...' 'हां, हां...बताओ न कि सैर-सपाटे के लिए जाती हैं' एक और महिला हंसते हुए बोली। दिपा तमतमाकर बोली 'मैंने कहा न चूप हो जाओ तुम सब! दोपहर में शिल्पा कहां जाती हैं यह पता करने के लिए तुम लोगों को मेरे साथ चलना होगा। वहीं चल कर अपनी आंखों से देख लेना। सिर्फ़ दो-तीन लोग ही साथ चलेंगे क्योंकि कहीं भी एक साथ इतने लोगों का जाना ठीक नहीं हैं।' दिपा के साथ कल दोपहर को प्रिती और अंजलि जाएगी, यह तय हुआ।
दूसरे दिन तय जगह पर तीनों सहेलियां मिली और थोड़ी दुरी बनाकर शिल्पा की कार का पिछा करने लगी। दिपा ने बुर्का पहन लिया था ताकि शिल्पा उसे पहचान न सके। प्रिती और अंजली को तो शिल्पा पहचानती नहीं थी। एकाध किलोमीटर बाद शिल्पा की कार एक बड़े अस्पताल के सामने रुकी। अंजली ने कहा- 'जरुर अस्पताल के किसी डॉक्टर से चक्कर होगा।' दिपा ने फ़िर आंखे तरेरी और चुपचाप उसके पिछे आने का इशारा किया। उन्होंने देखा कि शिल्पा एक जनरल वार्ड में पहुंची। उसके वहां पहुंचते ही, 'दीदी आ गई...दीदी आ गई' ऐसी दो-तीन आवाजे आई। वॉर्ड के मरीजों और उनके परिजनों के चेहरे पर एक तरह की खुशी इन तीनों ने भी स्पष्ट रुप से महसूस की।
शिल्पा ने अपनी बैग से बिस्कीट और फल निकालकर मरीजों में बाट दिए। दो मरिजों के परिजन बैग लेकर बाहर जाने के लिए तैयार खड़े थे। एक ने कहा- 'दीदी, आधी घंटे बाद पापा को यह दवाई और नारीयल पानी देना हैं और ये लीजिए नारियल पानी के पैसे।' और वो पैसे देकर चला गया। दूसरे की पत्नी को ग्लुकोज चढ़ रहा था। उसने कहा कि जैसे ही बॉटल खत्म होने को आएगी सिस्टर को बुला लेना। शिल्पा ने उससे कहा, 'तुम बेफिक्र होकर घर जाओं। मैं सव्वा चार बजे तक तुम्हारी पत्नी के पास हूं।'
व्यक्ति कृतज्ञता के भाव से बोला, 'हां दीदी, मेरी पत्नी तो आज ही भरती हुई हैं इसलिए मैं आपको अच्छे से जानता नहीं हूं। लेकिन यहां पर सभी ने मुझे बताया कि आप पिछले कई सालों से हर रोज दोपहर में मरिजों के पास रहती हैं। उनकी देखभाल करती हैं ताकि मरिजों के परिजनों को थोड़ा सा आराम मिल सके और वे अन्य काम निपटा सके। यद्यपि मैं आपको जानता नहीं हूं लेकिन फ़िर भी मेरी पत्नी को आपके भरोसे छोड़ने में थोड़ी सी भी चिंता नहीं हैं।'
शिल्पा बोली 'अच्छा-अच्छा अब जल्दी जाओं। बातों में समय पास हो जाएगा!' उस व्यक्ति के जाने के बाद शिल्पा बाकि मरिजों से भी बाते करने लगी। शिल्पा ने कई सारे चुटकुले सुनाकर माहौल को खुशनुमा बना दिया। यह सब देख दिपा ने प्रिती और अंजली की तरफ देखा तो दोनों की नजरे मारे शर्म के झुकी हुई थी। अब इन लोगों के पास बोलने के लिए एक शब्द भी नहीं था। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि घर का पूरा काम कर, बुजुर्ग सास की इतनी सेवा करके, खुद के आराम करने का वक्त कोई महिला अनजाने लोगों की सेवा में और वो बिना किसी स्वार्थ के कैसे दे सकती हैं? दिपा ने कहा कि शिल्पा मरिजों को दिए जाने वाले जूस, नारियल पानी या उनके लिए दुकान से कोई दवाई आदि खरिद कर लानी हो तो उसके पैसे ले लेती हैं। क्योंकि ये एक दिन की बात तो नहीं हैं न! दूसरे इससे मरिजों को और उनके परिजनों को भी किसी प्रकार का संकोच नहीं होता। हां, यदी कोई बहुत गरीब हैं तो शिल्पा ये सामान अपने पैसे से भी ले लेती हैं। प्रिती और अंजली को आज जनरल वॉर्ड के सभी मरिजों के चेहरे पर शिल्पा की वजह से जो खुशी देखने मिल रहीं थी, उसकी तुलना में अपनी किटी पार्टी से मिलने वाली खुशी एकदम फिकी महसूस होने लगी। साथ ही एक तरह की ग्लानि भी कि इतनी नेकदिल स्त्री के लिए उन्होंने बिना किसी जानकारी के इतने गंदे और गलत शब्दों का प्रयोग किया था!!
सुचना-
यह कहानी आज दि. 21 फरवरी 2018 के 'दैनिक भास्कर' के 'मधुरिमा' में प्रकाशित हुई हैं।
इमेज- गूगल से साभार
शिल्पा ने अपनी बैग से बिस्कीट और फल निकालकर मरीजों में बाट दिए। दो मरिजों के परिजन बैग लेकर बाहर जाने के लिए तैयार खड़े थे। एक ने कहा- 'दीदी, आधी घंटे बाद पापा को यह दवाई और नारीयल पानी देना हैं और ये लीजिए नारियल पानी के पैसे।' और वो पैसे देकर चला गया। दूसरे की पत्नी को ग्लुकोज चढ़ रहा था। उसने कहा कि जैसे ही बॉटल खत्म होने को आएगी सिस्टर को बुला लेना। शिल्पा ने उससे कहा, 'तुम बेफिक्र होकर घर जाओं। मैं सव्वा चार बजे तक तुम्हारी पत्नी के पास हूं।'
व्यक्ति कृतज्ञता के भाव से बोला, 'हां दीदी, मेरी पत्नी तो आज ही भरती हुई हैं इसलिए मैं आपको अच्छे से जानता नहीं हूं। लेकिन यहां पर सभी ने मुझे बताया कि आप पिछले कई सालों से हर रोज दोपहर में मरिजों के पास रहती हैं। उनकी देखभाल करती हैं ताकि मरिजों के परिजनों को थोड़ा सा आराम मिल सके और वे अन्य काम निपटा सके। यद्यपि मैं आपको जानता नहीं हूं लेकिन फ़िर भी मेरी पत्नी को आपके भरोसे छोड़ने में थोड़ी सी भी चिंता नहीं हैं।'
शिल्पा बोली 'अच्छा-अच्छा अब जल्दी जाओं। बातों में समय पास हो जाएगा!' उस व्यक्ति के जाने के बाद शिल्पा बाकि मरिजों से भी बाते करने लगी। शिल्पा ने कई सारे चुटकुले सुनाकर माहौल को खुशनुमा बना दिया। यह सब देख दिपा ने प्रिती और अंजली की तरफ देखा तो दोनों की नजरे मारे शर्म के झुकी हुई थी। अब इन लोगों के पास बोलने के लिए एक शब्द भी नहीं था। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि घर का पूरा काम कर, बुजुर्ग सास की इतनी सेवा करके, खुद के आराम करने का वक्त कोई महिला अनजाने लोगों की सेवा में और वो बिना किसी स्वार्थ के कैसे दे सकती हैं? दिपा ने कहा कि शिल्पा मरिजों को दिए जाने वाले जूस, नारियल पानी या उनके लिए दुकान से कोई दवाई आदि खरिद कर लानी हो तो उसके पैसे ले लेती हैं। क्योंकि ये एक दिन की बात तो नहीं हैं न! दूसरे इससे मरिजों को और उनके परिजनों को भी किसी प्रकार का संकोच नहीं होता। हां, यदी कोई बहुत गरीब हैं तो शिल्पा ये सामान अपने पैसे से भी ले लेती हैं। प्रिती और अंजली को आज जनरल वॉर्ड के सभी मरिजों के चेहरे पर शिल्पा की वजह से जो खुशी देखने मिल रहीं थी, उसकी तुलना में अपनी किटी पार्टी से मिलने वाली खुशी एकदम फिकी महसूस होने लगी। साथ ही एक तरह की ग्लानि भी कि इतनी नेकदिल स्त्री के लिए उन्होंने बिना किसी जानकारी के इतने गंदे और गलत शब्दों का प्रयोग किया था!!
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यह कहानी आज दि. 21 फरवरी 2018 के 'दैनिक भास्कर' के 'मधुरिमा' में प्रकाशित हुई हैं।
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