Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

बलात्कार के लिए दोषी कौन...पीड़िता, बलात्कारी या हम सब???

• "उसने बहुत ही छोटे कपड़े पहन रखे थे!"
  • "अच्छी लड़कियाँ रात के नौ बजे के बाद बाहर नहीं जाती!"
    • "उसका तो चरित्र ही ऐसा था!!"

ऐसी बाते क्या दर्शाती हैं? यहीं न कि बलात्कार के लिए दोषी बलात्कारी नहीं बल्कि बलात्कार पीड़िता ही हैं! उसी ने बलात्कारी को न्यौता दिया, “आ...और मेरा बलात्कार कर!!!” यह वाक्य पढ़ने में ज़रुर अतिशयोक्तिपुर्ण लग रहा होगा लेकिन यहीं कड़वी सच्चाई हैं। आज भी हम बड़े से बड़े रूह कंपा देने वाले बलात्कार की घटना के बाद पीड़िता को ही दोषी मानते हैं। उसे ही भला-बुरा कहते हैं। उसे ही तिरस्कृत निगाहों से देखते हैं। अफ़सोस की इस जहर ने रगो के रंग को ही काला कर दिया हैं। यदि उपरोक्त कारणों की वजह से पीड़िता ही बलात्कार के लिए दोषी हैं तो एक ‘मेड’ जो प्राय: पूरे कपड़ों में रहती हैं या एकदम छोटी-छोटी तीन-चार साल की लड़कियां…जिनके अभी दूध के दांत भी नहीं टूटे उन पर बलात्कार क्यों होता हैं? अत: बलात्कार के लिए पीड़िता को ही दोषी मानना इंसानियत का ही गला घोटना हैं।

बलात्कार के लिए बलात्कारी तो दोषी हैं ही लेकिन उससे ज्यादा दोषी हैं ‘हम सब’, हां... हम सब! कोई भी पुरुष बलात्कारी बनने के लिए पैदा नहीं होता। मुलत: एक पुरुष भी उतना ही मासुम होता हैं जितनी की एक स्त्री! फ़िर ऐसा क्या होता हैं कि कुछ पुरुष बलात्कार जैसा घिनौना कार्य करने तत्पर हो जाते हैं? वास्तव में हम सब मिल कर एक मासूम पुरूष को बलात्कारी बनाते हैं। हम पुरुषों की परवरिश ही कुछ इस तरह से करते हैं कि उनमें ''हम महिलाओं से श्रेष्ठ हैं और महिलाएं सिर्फ़ एक उपभोग की वस्तू हैं'' यह भावना पनपती हैैं।  

ऐश ट्रे 
हाल ही में अमेज़न पर सिगरेट बुझाने के लिए एक ऐश ट्रे बिक रहीं थी, जो एक छोटे टब के रूप में थी। जिसमें एक महिला निर्वस्त्र होकर खुलकर दिखाई गई थी। ऐश ट्रे में सिगरेट बुझाने का स्थान महिला की योनी को बनाया गया था। स्त्री के गुप्तांग में सिगरेट बुझाना...बाप रे...बनाने वाले की सोच इतनी निचले स्तर पर आ सकती है? क्या स्त्री महज एक देह...एक भोग्या...उपभोग करने की वस्तु भर हैं? क्या स्त्री एक इंसान नहीं है? बलात्कार जैसी समस्या इसी घिनौनी मानसिकता की देन हैं। बलात्कारी को फाँसी की सजा देने की गुहार लगाना तब तक व्यर्थ है, जब तक इस तरह की अश्लील सोच को हम खत्म नहीं कर पाते। मैं नहीं जानती की इस ऐश ट्रे के कितने ऑर्डर बुक हुए थे...मुझे नहीं लगता कि सिगरेट बुझाने के लिए राख झटकते वक्त उन लोगों के हाथ कांपे होंगे! क्योंकि हमने तो जिती-जागती स्त्री के गुप्तांग में भी विकृती की राख झटकी हैं!! (अब कड़े विरोध के बाद अमेजन ने वो ऐश ट्रे हटा ली हैं।) हैवानियत की हदे पार करनेवाली बलात्कार की घटनाएं होती हैं क्योंकि बलात्कारी के मन में किसी का भी भय नहीं हैं। न ही परिवार का, न ही समाज का और न ही कानून का। इसलिए ही तो वो शिकार को सिगरेट से दागता हैं, उसके अंदर रॉड घुसाने का साहस करता हैं!

असल में एक मासूम पुरुष बलात्कारी तब बनता हैं.........

• जब हमारे समाज में बेटे के पैदा होने पर जश्न मनाया जाता हैं और बेटी को पैदा होने के लिए भी किसी की इजाज़त लेनी पड़ती है!

• जब अपने खुद के ही घर में लड़की की एक इंसान के तौर पर परवरिश नहीं होती। उसे हमेशा किसी की आश्रिता होने का एहसास कराया जाता हैं। इससे उसके भाई की सोच में श्रेष्ठता का भाव आता हैं!

• जब लड़कों को पैदाइशी तौर पर हर तरह हक मिलता हैं। लड़के जैसा चाहे वैसा जी सकते हैं। उनके बोलने, चलने, उठने-बैठने, हंसने पर कोई बंदिशे नहीं होती। पर लड़कियों के बोलने, चलने, उठने-बैठने, हँसने पर हजारों बंदिशे लगी होती हैं। लड़कियों का जन्म अपना जीवन जीने के लिए नहीं होता!

• जब लड़कियों को हर चीज सिखाने की कोशिश की जाती हैं लेकिन लड़कों को महिला के साथ रहने की तमीज भी नहीं सिखाई जाती!

• जब घर के लोग बेटी को ‘तन ढकने’ और बेटे को ‘मर्द’ बनने की सीख देते हैं!

• जब हम हमारी लड़कियों को लड़की की तरह नहीं, लड़कों की तरह पालने का दंभ भरते हैं!

• जब कोई अकेली लड़की को देख कर सीटी बजाता हैं और उसे चुप रहने कहा जाता हैं!

• जब कोई बाप बेटे की पढ़ाई के लिए और बेटी की शादी के लिए कर्ज लेकर यह साबित करता हैं कि उसकी नजर में बेटी की पढ़ाई का महत्व कम हैं!

• जब लड़के वाले दहेज की मांग करते हैं और लड़की का पिता सर झुका कर उसे स्विकार करता हैं!

• जब लड़कीयों को सती सावित्री होने के पाठ पढ़ाए जाते हैं और लड़कों को ‘मर्द’ होने का एहसास कराया जाता हैं!

• जब 58% महिलाओं को आज भी पास की किराणा दुकान पर जाने के लिए इजाज़त लेनी पड़ती हैं! (सर्वेक्षण के अनुसार)

• जब पत्नी की 'प्रतिष्ठा' से 'पति के अहं' को ठेस पहुँचती हैं!

• जब महिलाएं उपयोग और उपभोग की वस्तुएँ मानी जाती हैं। हर छोटे-मोटे निर्णय में भी उनकी भागीदारी मान्य नहीं होती!

• जब न्याय की देवी को आंखों पर पट्टी बांधकर सबूतों के अभाव में मजबूर होकर... बलात्कारी को रिहा करना पड़ता हैं!

• जब अमेज़न जैसी कंपनियां नारी देह की नुमाइश ऐश ट्रे के रूप में करती हैं!

• जब देश के राजनेता संसद में बैठकर पोर्न देखते हैं!

• जब सरकार जीएसटी के तहत सिंदूर, चूडियां और बिंदी जैसे मेकअप के सामान को करमुक्त रख कर सैनिटरी नैपकीन व हायजीन की चीजों पर कर लगाती हैं। मतलब सरकार महिलाओं के स्वास्थ से ज्यादा उनकी सुंदरता को महत्व देती हैं!!!!!!!

अत: दोष जितना उन बलात्कारी दरिंदो का हैं उतना ही हमारा भी हैं। हमारे हाथ उन कई अनगिनत लड़कियों के खून से रंगे हैं, जिनकी आवाज़ हमने अनसुनी कर दी हैं। जब तक हम सभी को यकीन नहीं दिला देते कि स्त्री को अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का हक हैं। उसका अपना भी स्वतंत्र अस्तित्व हैं, दुनिया जितनी लड़कों की हैं, उतनी ही लड़कियों की भी हैं तब तक हम ही बलात्कारी हैं...! हमें और कितनी ‘निर्भयायों और दामिनियों’ का खून चाहिए? आखिरकार हम कब जागरुक होंगे?

ये मेरे अपने विचार हैं। ज़रुरी नहीं कि आप इससे सहमत ही हो। आपको क्या लगता हैं...बलात्कार के लिए दोषी कौन है...पीड़िता, बलात्कारी या हम सब???

Keywords:Rape, Rape victim, rapist, Amazon, Nirbhaya, GST, ashtray, law, God of justice, dowry, porn movies,Who is guilty of rape 

Share the post

बलात्कार के लिए दोषी कौन...पीड़िता, बलात्कारी या हम सब???

×

Subscribe to आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×