प्रदीप है नित कर्म पथ पर
फिर अंधेरों से क्यों डरें!
हम हैं जिसने अंधेरे का
काफिला रोका सदा,
राह चलते आपदा का
जलजला रोका सदा,
जब जुगत करते रहे हम
दीप-बाती के लिए,
जलते रहे विपद क्षण में
संकट सब अनदेखा किए|
प्रदीप हम हैं जो
तम से सदा लड़ते रहे,
हम पुजारी, प्रिय हमें है
ज्योति की आराधना,
हम नहीं हारे भले हो
तिमिर कितना भी घना,
है प्रखर आलोक उज्ज्वल
स्याह रजनी के परे
श्रेष्ठ भारत लक्ष्य सदा है
फिर अंधेरों से क्यों डरें!
Related Articles
This post first appeared on चेतना के सà¥à¤µà¤°, please read the originial post: here