जहन में वो तो ख्वाब जैसा है,
वो बदन भी गुलाब जैसा है |
बंद आँखों से पढ़ भी सकता हूँ,
तेरा चेहरा किताब जैसा है |
मेरी पलके झुकी है सजदे में,
दिल भी गंगा के आब जैसा है |
हर घड़ी ज़िक्र तेरा करता हूँ,
ये नशा भी शराब जैसा है | - अर्पित शर्मा "अर्पित"
परिचय
अर्पित शर्मा जी अर्पित उपनाम से रचनाये लिखते है आपके पिता का नाम कृष्णकांत शर्मा है | आपका जन्म मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में 28 अप्रैल, 1992 को हुआ | फिलहाल आप शाजापुर में रहते है | आपसे इस मेल [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है |
Roman
zehan me wo khwab jaisa hai
wo badan bhi gulab jaisa hai
band aankho se padh bhi sakta hun
tera chehra kitaab jaisa hai
meri palke jhuki hai sajde me
dil bhi ganga ke aab jaisa hai
har ghadi zikra tera karta hun
ye nasha bhi sharaab jaisa hai -Arpit Sharma "Arpit"
वो बदन भी गुलाब जैसा है |
बंद आँखों से पढ़ भी सकता हूँ,
तेरा चेहरा किताब जैसा है |
मेरी पलके झुकी है सजदे में,
दिल भी गंगा के आब जैसा है |
हर घड़ी ज़िक्र तेरा करता हूँ,
ये नशा भी शराब जैसा है | - अर्पित शर्मा "अर्पित"
परिचय
अर्पित शर्मा जी अर्पित उपनाम से रचनाये लिखते है आपके पिता का नाम कृष्णकांत शर्मा है | आपका जन्म मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में 28 अप्रैल, 1992 को हुआ | फिलहाल आप शाजापुर में रहते है | आपसे इस मेल [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है |
Roman
zehan me wo khwab jaisa hai
wo badan bhi gulab jaisa hai
band aankho se padh bhi sakta hun
tera chehra kitaab jaisa hai
meri palke jhuki hai sajde me
dil bhi ganga ke aab jaisa hai
har ghadi zikra tera karta hun
ye nasha bhi sharaab jaisa hai -Arpit Sharma "Arpit"